पटना. आकाशवाणी केंद्र, पटना के ‘बटुक भाई’ का निधन शुक्रवार को हो गया. 77 साल के बटुक भाई कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. पटना के पाटलिपुत्र मोहल्ले में स्थित वसुंधरा अपार्टमेंट में उन्होंने अंतिम सांस ली. उनका वास्तविक नाम छत्रानंद सिंह झा था और आकाशवाणी पटना के चौपाल कार्यक्रम में वे ‘बटुक भाई’ के प्रमुख पात्र हुआ करते थे. उनका यह नाम इतना लोकप्रिय था कि कभी वास्तविक नाम बहुत कम ही लोगों को पता था.
‘बटुक भाई’ का जन्म 5 अप्रैल 1946 को चनौर में हुआ था. रेडियो के शौकीन रहे लोग उनसे भली-भांति परिचित हैं. दरअसल, बटुक भाई उस दौर की पहचान थे, जब लोगों की सुबह भी रेडियो के साथ होती थी और शाम भी. एक रेडियो की आवाज सुनने के लिए पूरा गांव जुटता था. इसी दौर में आकाशवाणी पटना से रोज शाम 6:30 से 7:30 बजे तक एक खास कार्यक्रम पेश होता था ‘चौपाल’. इसी कार्यक्रम में बटुक भाई, गीता दीदी, मुखिया जी और बुद्धन भाई प्रमुख कैरेक्टर हुआ करते थे. तब यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हुआ करता था. शायद ही कोई ऐसा रेडियो प्रेमी हो, जो इस कार्यक्रम को वक्त निकालकर नहीं सुनता था.
उनका नाम बटुक भाई क्यों पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी है. दरअसल, चौपाल कार्यक्रम में जब वे जुड़े, तो उनकी उम्र सबसे कम थी. इसलिए ही उनका नाम ‘बटुक भाई’ रख दिया गया था. वे आकाशवाणी केंद्र, पटना में उद्घोषक के रूप में कार्यरत थे.1968 में उन्होंने आकाशवाणी पटना में नियुक्त हुए थे. इससे पहले उन्होंने भारत संचार निगम लिमिटेड, गोरखपुर में भी काम किया. वे एक शिक्षक भी थे. वे मिथिला, मैथिलि और साहित्य के प्रति समर्पित थे.
बता दें कि बटुक भाई उर्फ स्व. छात्रानन्द सिंह झा युवावस्था में खेल जगत में बेस्ट फुटबालर रहे. प्रसिद्ध रंगकर्मी, सुप्रसिद्ध संगठित रंग संस्थान भंगिमा पटना के संस्थापक सदस्य व अध्यक्ष बटुक भाई युवावस्था से ही चर्चित कलाकार रहे. साहित्यिक कृति में इनका अभूतपूर्व योगदान रहा है. इनकी चर्चित पुस्तक डोकहरक आंखि, कारक एक गुलाबक लेल, सीता हरण, सुनू जानकी (नाटक) काफी प्रसिद्धि पायी. अनुवाद साहित्य में भी इनका प्रबल योगदान रहा. अंतिम प्रश्न, गाछा, रामलीला, नट् सम्राट, कबीर आज उनकी चर्चित रचना है.
साहित्यिक- सांस्कृतिक संस्थानों से इन्हें समय-समय पर सम्मानित किया गया. वर्ष 2014 में ज्योतिरीश्वर सम्मान, राष्ट्रीय शिखर सम्मान, भारतीय साहित्यकार संसद सम्मान, किरण मैथिलि साहित्य शोध सम्मान, चेतना समिति सम्मान इनको मिला हुआ था. बटुक भाई हंसमुख प्रतिभा के धनी व साहित्यिक हस्ताक्षर पुरुष के रूप में जाने जाते रहे.