बिहार में सियासत के केंद्र बने कुशवाहा, अपनों के दबाव में उबल रही उनकी खीर

पटना। बिहार की राजनीति का अभी पूरा फोकस रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा पर है। साढ़े चार साल से केंद्र में मंत्री रहने वाले कुशवाहा के बयान, व्यवहार और गतिविधियों पर दोनों गठबंधनों की नजर है। राजग का भरोसा साथ बने रहने का है तो महागठबंधन को भी नई दोस्ती की उम्मीद है। किंतु कुशवाहा के विवादित बयानों के अलग-अलग संकेत और संदर्भ निकाले जा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि उनकी मंशा और मजबूरी क्या है? क्यों उनकी राजनीति को संदेह के नजरिए से देखा जा रहा है।

लोकसभा चुनाव के पहले मोह और विछोह के रास्ते से गुजर रहे कुशवाहा पर अपनों का तीन-तरफा दबाव है। पार्टी में उनके दो प्रमुख सिपहसालार हैं, कार्यकारी अध्यक्ष भगवान सिंह कुशवाहा और नागमणि। मगर सबसे ज्यादा दबाव राकांपा नेता छगन भुजबल का है।
31 अगस्त को दिल्ली में भुजबल से कुशवाहा की मुलाकात के बाद महागठबंधन की उम्मीदें जोर पकडऩे लगी हैं, क्योंकि महाराष्ट्र के इस नेता का लालू से भी बेहतर संबंध है। कुशवाहा उन्हें अपना राजनीतिक गुरु बताते रहे हैं। हफ्ते भर के भीतर भुजबल की लालू और कुशवाहा से अलग-अलग मुलाकात के मतलब निकाले जा रहे हैं। हालांकि कुशवाहा इसे गैर-राजनीतिक मुलाकात बताते हैं, लेकिन उनके विवादित बोल से अर्थ निकाले जा रहे हैं।

अब बात भगवान सिंह और नागमणि की। दोनों सांसद बनना चाह रहे हैं। एक की पसंदीदा सीट आरा है तो दूसरे की उजियारपुर। दोनों कभी राजद में थे। आज कुशवाहा के साथ हैं। दोनों अपने पसंदीदा क्षेत्रों का समीकरण और संभावना तौल रहे हैं। उसी के मुताबिक कुशवाहा पर दबाव बना रहे हैं।

हालांकि भगवान किसी तरह के दबाव से इनकार करते हैं, लेकिन यह भी पूछते हैं कि बिहार में राजग कहां है? चार साल में न कोई कमेटी, न संयोजक। हम बतासे के लिए मंदिर तोडऩे के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन भाजपा को भी सोचना पड़ेगा कि घटक दलों को क्या चाहिए?
आरा और जगदानंद की सीट बक्सर में कुशवाहा की अच्छी आबादी है। भगवान को टिकट चाहिए और जगदानंद को वोट। यह तभी संभव है जब भगवान राजद से लड़ें या गठबंधन करें। नागमणि को उजियारपुर पसंद है, जहां से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय सांसद हैं। ऐसे में नागमणि को भी राजग से उम्मीद नहीं है।

महागठबंधन का मैदान खुला है। पिछली बार राजद के टिकट पर आलोक मेहता हार चुके हैं। उनकी सीट बदल सकती है। नागमणि को मिल सकती है। इसलिए कुशवाहा पर दबाव है कि वह अपने दोस्तों का भी ख्याल रखें।