मुजफ्फरपुर। शाही लीची की मांग अधिक होने के कारण राज्य में इसकी खेती का रकबा बढ़ाने की तैयारी है। इसके लिए गैर बाढ़ग्रस्त इलाके का चयन किया जा रहा है। करीब 12 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल बढ़ाने की योजना पर काम हो रहा है। अगले पांच साल में लक्ष्य को पूरा करना है। पहले चरण में इस साल 50 हजार पौधे लगाए जाएंगे। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत में भी पौधे भेजे जाएंगे। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुशहरी और जिला कृषि विभाग ने इसे लेकर पहल की है।
अनुसंधान केंद्र में इसके लिए 50 हजार पौधे तैयार किए गए हैं। एक हेक्टेयर में 100 पौधे लगाए जाएंगे। जुलाई-अगस्त तक पौधारोपण होगा। राज्य में छपरा, सिवान, गया, नवगछिया, पटना व उसके आसपास के जिलों में पौधे लगाने की योजना है।

दूसरी ओर, इसी अभियान के तहत दक्षिण भारत में भी शाही लीची के पौधों को भेजा जा रहा है। आंध्र प्रदेश व केरल के एक दर्जन किसान राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के संपर्क में हैं। तमिलनाडु में छह हजार, कर्नाटक एवं केरल में तीन-तीन हजार पौधे भेजे भी गए हैं।

लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. शेषधर पांडेय के मुताबिक शाही लीची मुजफ्फरपुर की पहचान है। उसकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए क्षेत्रफल का फैलाव किया जा रहा है। 100 रुपये प्रति पौधा उपलब्ध कराया जा रहा है।
सूबे में अभी 32 हजार हेक्टेयर और मुजफ्फरपुर में 12 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है। बीते साल की तुलना में इस साल अच्छे उत्पादन की उम्मीद है। लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह बताते हैं कि पिछले साल अच्छा मंजर आने के बाद भी मौसम की प्रतिकूलता के कारण ज्यादातर लीची नष्ट हो गई थी।
कुल उत्पादन एक लाख टन की तुलना में मात्र 50 हजार टन का ही उत्पादन हुआ। इस साल भी काफी अच्छा मंजर आया है। मौसम अनुकूल रहा तो 75 हजार टन उत्पादन का अनुमान है।
