समस्तीपुर। लगातार बदलते मौसम के मिजाज ने खेती की तस्वीर बदल दी है। बाढ़ और सुखाड़ के बीच बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि किसानों की मेहनत पर पानी फेर रही है। अभी धान की खेती के लिए किसान बिचड़ा तैयार करने में जुटे हैं। इस मौसम में बिचड़ा और फसल में तना छेदक, पत्ती लपेटक, फूदका जैसे कीटों का प्रकोप होता है।
धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड जैसे रोगों का प्रकोप होता है। कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से शिविर का आयोजन कर किसानों को धान की बेहतर खेती, बिचड़ा लगाने और कीट तथा रोग प्रबंधन को लेकर जानकारी दी जा रही है।
उत्तर बिहार में अगात किस्म की धान के लिए 25 मई से बिचड़ा गिराने का काम शुरू हो जाता है, जबकि 10 जुलाई के बाद रोपनी शुरू कर दी जाती है। यहां खरीफ सीजन में अरहर और मक्के की खेती की भी तैयारी है। बरसात में इनके पौधों पर कीटों का हमला होता है।
ऐसे में विज्ञानी सलाह के अनुरूप ही खेती करनी चाहिए। जून से ही इसकी रोपाई आरंभ हो जाती है, लेकिन मौसम की अनुकूलता एवं कीड़े-मकोड़ों के प्रकोप से इसकी उत्पादकता प्रभावित हो रही है।

