नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अब उपमुख्यमंत्री की भूमिका में हैं। सत्ता में आने के बाद वे अपने वादों में घिरे हैं। उन्होंने कई मामलों में अपनी छवि लालू प्रसाद से अलग गढ़ी है। उन्होंने सामाजिक न्याय की जगह आर्थिक न्याय की लड़ाई लड़ने की ठानी है। वे राजद को ए टू जेड की पार्टी बनाने में लगे हैं। यादव या माई समीकरण वाली छवि से पार्टी को बाहर निकालने में लगे हैं। वे अपनी विनम्रता से सभी को कायल कर रहे हैं।

सार्वजनिक मंच पर भी नीतीश कुमार का पैर छूते हैं। राजभवन में शपथ ग्रहण से पूर्व यह दरियादिली उन्होंने दिखायी। नीतीश कुमार ने उन्हें ‘बाबू’ कहकर कैसे बैठा दिया था उसमें उन्हें चाचा भतीजे के बीच का स्नेह दिख रहा है। कहने का मतलब यह कि तेजस्वी अब समय को समझने लगे हैं और राजनीति की धार उनके अंदर पैनी होती जा रही है। लेकिन उनके लिए सबसे बड़े चैलेंज के रुप में उनके विरोधी या साथी नहीं है बल्कि उनके वे वादे हैं जो 2020 चुनाव से पहले उन्हें जनता के सामने किए थे।

तेजस्वी ने राजद के घोषणा पत्र में कौन-कौन से बड़े वायदे किए थे
- बिहार के बेरोजगार युवाओं को 10 लाख नौकरी देने का वादा।
- जिन बेरोजगार युवाओं को नौकरी नहीं मिल पाई उन्हें 1500 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का वादा।
- संविदा प्रथा को खत्म कर सभी कर्मचारियों को स्थायी किया जाएगा और समान काम का समान वेतन दिया जाएगा। शिक्षकों के लिए समान काम समान वेतन का वादा।
- सभी विभागों में निजीकरण को समाप्त किया जाएगा।
- नियोजित शिक्षकों, वेतनमान कार्यपालक सहायकों, लाइब्रेरियन उर्दू शिक्षकों की बहाली की जाएगी।
- सरकारी नौकरियों में आवेदन फॉर्म भरने के लिए बिहार के युवाओं को आवेदन शुल्क नहीं देना होगा और परीक्षा केंद्र तक की यात्रा मुफ्त होगी।
- जीविका कैडरों को नियमित वेतनमान पर स्थायी नौकरी के साथ समूहों के सदस्यों को ब्याज मुक्त ऋण देंगे।
- सरकारी नौकरियों के 85 प्रतिशत पद बिहार के युवाओं के लिए आरक्षित करने का वादा ।
- पुरानी पेंशन शुरू की जाएगी।
- किसानों का कर्ज माफ करने का वादा।
- गरीबों को मिलने वाली पेंशन की राशि 400 से बढ़ाकर 1000 की जाएगी। हालांकि नीतीश कुमार इसे बढ़ाकर 500 कर चुके हैं।

उम्मीदों वाले उपमुख्यमंत्री
उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उनके ये वादे उन्हें याद दिलाए जाने लगे हैं। बिहार के लोगों की अपेक्षाएं उनसे बढ़ गई हैं। विधान सभा चुनाव के बाद तेजस्वी यादव ने प्रेस कांफ्रेस कर आरोप लगाया था कि 20 सीटों पर कुछ-कुछ सीटों से उम्मीदवारों को हरवा दिया गया। नौ-नौ सौ पोस्टल वोट रद्द कर दिए गए। उन्होंने नीतीश कुमार पर निशाना साधा था कि उनकी सरकार चोर दरवाजे से आई है। कहा जाता है कि पोस्टल वोट में ज्यादातर शिक्षकों के वोट थे। बिहार टीईटी शिक्षक संघ के अध्यक्ष अमित विक्रम कहते हैं कि तेजस्वी यादव कहते रहे हैं कि शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन देना चाहिए।

अब उन्हें जल्द से जल्द कैबिनेट की बैठक में इस असमानता को दूर करना चाहिए। पुरानी पेंशन का सवाल भी तेजस्वी उठाते रहे हैं। इसलिए उनसे उम्मीद की जा रही है कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड की तरह बिहार में भी पुरानी पेंशन लागू कराएंगे। अभी तो कुछ दिन पहले तेजस्वी यादव ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। लेकिन जल्द ही उनके किए वादे पूरे नहीं हुए तो उनकी बन रही छवि को धक्का लगेगा। राजनीतिक विश्लेषक ध्रुव कुमार कहते हैं कि नई सरकार को ईमानदार कोशिश रोजगार के सवाल पर करनी चाहिए।
जो भी बैकलॉग के पद हैं उन्हें जल्द से जल्द भरना चाहिए। विश्वविद्यालयों में ही विभिन्न तरह के पद खाली पड़े हुए हैं। भाजपा के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं कि तेजस्वी यादव ने चुनाव के समय कई वायदे किए थे, लेकिन अब कह रहे हैं कि वे मुख्यमंत्री नहीं बने हैं उमुख्यमंत्री बने हैं। तेजस्वी अपने वायदे से मुकरने की कोशिश कर रहे हैं। वे वायदे से मुकरते हैं तो जनता समझेगी कि कुर्सी के लिए ही झूठे वायदे करते हैं।

