गया. सरकारी स्कूलों में अक्सर बच्चों की यूनिफाॅर्म के नियम का पालन ही सख्ती से नहीं हो पाता, ऐसे में अगर किसी स्कूल में स्टूडेंट्स के साथ टीचिंग व अन्य स्टाफ भी यूनिफाॅर्म में नज़र आए तो हैरानी ज़रूर हो सकती है. गया ज़िले के एक ऐसे ही स्कूल के ड्रेस कोड नियम ने ऐसा ही तहलका मचा दिया है और पूरे बिहार में ऐसी मिसाल की चर्चा हो रही है. सरकारी स्कूलों के लिए उदाहरण बन रहे इस स्कूल में छात्र-छात्राओं के साथ ही टीचर, रसोइए व अन्य सुरक्षा स्टाफ भी एक निर्धारित यूनिफाॅर्म में स्कूल आते हैं और दूसरे नियमों के पालन के लिहाज़ से भी स्कूल अनुशासन को बढ़ावा दे रहा है.

गया ज़िले के कुछ सरकारी स्कूलों की व्यवस्था निजी स्कूलों को टक्कर देती दिखती है. ज़िले में एक ऐसा सरकारी स्कूल है, जहां सभी सदस्य ड्रेस कोड में नज़र आते हैं. बांके बाज़ार प्रखंड क्षेत्र का मोनिया हाई स्कूल प्रशासन की सख्ती के कारण सभी को अपनी तय ड्रेस में ही स्कूल आना अनिवार्य है. इतना ही नहीं, स्कूल में सभी के पास पहचान पत्र है. सबसे खास बात यह कि चेतना सत्र यानी असेंबली में स्टूडेंट्स के साथ ही शिक्षक व रसोइयों की उपस्थिति भी ज़रूरी होती है.

पूरे स्टाफ को सही लगा कारण
असल में, स्कूल में पहली से लेकर 10वीं कक्षा तक के सभी बच्चों के लिए यूनिफाॅर्म पहले ही तय थी. पिछले दिनों स्कूल के प्रधानाध्यापक ने निर्णय लिया कि शिक्षक आदि भी एक ड्रेस कोड का पालन करें. शिक्षकों और छात्रों के बीच समानता का भाव विकसित हो और सभी एक दूसरे का आदर करना सीखें, इस सकारात्मक विचार को अपनाने में पूरे स्टाफ ने भी दिलचस्पी दिखाई. इसके बाद सवाल खड़ा हुआ कि इस ड्रेस का इंतज़ाम कैसे होगा और किस तरह ड्रेस कोड तय होगा!

हेडमास्टर ने निजी फंड से की व्यवस्था
प्रधानाध्यापक नागेश्वर दास ने बताया कि स्टूडेंट्स की यूनिफाॅर्म के रंग को देखते हुए शिक्षकों के लिए अलग कलर चुना गया. विद्यालय में कुल 13 शिक्षक-शिक्षिकाएं हैं. इनके अलावा पांच रसोइए, शिक्षा सेवक, रात्रि प्रहरी आदि हैं. दास ने पूरे स्टाफ के लिए निजी फंड से ड्रेस बनवाई. शिक्षकों को पिंक शर्ट और नेवी ब्लू पैंट तो शिक्षिकाओं को भी इसी रंग के सलवार कुर्ते दिलवाए गए. रसोइया के लिए हरे रंग की साड़ी और रात्रि प्रहरी के लिए ब्लू शर्ट और खाकी पैंट का इंतज़ाम करवाया गया.



