‘मोबाइल जलाओ, टॉर्च ठीक से दिखाना…’ CM नीतीश के गृह जिले के अस्पताल में कुछ इस तरह चलता है मरीजों का इलाज

नालंदा : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सार्वजनिक मंच से कुछ कहें या फिर न कहें, एक बात जरूर कहते हैं। हम तो काम करते हैं। काम करने के लिए जनता ने चुना है। नीतीश कुमार इस दौरान ये जोड़ना नहीं भूलते कि बिहार में विकास की गंगा बह रही है। ऐसा नहीं है कि बिहार में विकास नहीं हुआ है। फिर भी, बहुत कुछ होना बाकी है। खासकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में। लोक कल्याणकारी राज्य के सपने में आम लोगों के स्वास्थ्य की चिंता सरकारें करती हैं। लेकिन, ये क्या? मुख्यमंत्री के गृह जिले में टॉर्च की रोशनी में मरीजों का इलाज हो रहा है। जी हां, ये हम नहीं कह रहे हैं। आप खुद नीचे दिये गये वीडियो में देख सकते हैं। एक महिला मरीज सदर अस्पताल के बेड पर पड़ी हुई है। उसके साथ दो महिलाएं हैं। तीन लोग बगल में खड़े हैं। उसमें से एक डॉक्टर हैं, जो महिला का इलाज कर रहे हैं। पास खड़ा व्यक्ति टॉर्च जला रहा है।

अस्पताल का हाल बदहाल
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा का आईएसओ प्रमाणित बिहारशरीफ सदर अस्पताल आए दिन सुर्खियों में रहता है। एक तरफ जहां सूबे के स्वास्थ्य मंत्री मिशन 60 के तहत व्यवस्था सुधार के नाम पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रहे हैं। वहीं इमरजेंसी और रेड जोन वार्ड में बिजली गुल होने पर बैकअप की कोई व्यवस्था नहीं है। मरीजों का इलाज मोबाइल और टॉर्च की रोशनी के सहारे चलता है। शुक्रवार की देर शाम करीब सवा नौ बजे इस वार्ड की बिजली गुल हो गयी। करीब 15 मिनट तक वार्ड में अंधेरा छाया रहा इस दौरान ड्यूटी में तैनात डॉ. संजीव कुमार मोबाइल और टॉर्च की रोशनी में इलाज करते रहे। भगवान जाने वो मरीज को अंधेरे में कितना देख पाए होंगे!

अंधेरे में इलाज
इतना ही नहीं, डॉक्टर साहब इस अंधेरे से इतने डर गए कि उन्होंने कवरेज कर रहे मीडियाकर्मी पर मुकदमा दर्ज करने की धमकी दे रहे हैं। आपको बता दें कि मिशन 60 के तहत 9 नवंबर तक स्वास्थ्य व्यवस्था सही करने का निर्देश जारी हुआ है। समय सीमा बीत जाने के बाद भी ओपीडी और वेटिंग जोन के साथ-साथ कई निर्माण अधूरे हैं। निर्माण अधूरा रहने के कारण इलाज कराने वाले मरीजों को भी इधर से उधर भटकना पड़ता है। निर्माण में करोड़ों रुपए लगाए जा रहे हैं। मगर, अति संवेदनशील इमरजेंसी वार्ड और ड्रेसिंग रूम में बिजली गुल होने पर बैकअप गोल है। हालांकि, अस्पताल के लिए स्पेशल फीडर से बिजली आपूर्ति की जाती है।

विद्युत आपूर्ति बाधित
बिजली जाने पर जेनरेटर की व्यवस्था भी है। उस पर प्रति महीने 2 से तीन लाख रुपये खर्च किये जाते हैं। लेकिन, इमरजेंसी के लिए इनवर्टर और बैट्री की व्यवस्था नहीं है। मरीज दर्ज से गुजर रहे होते हैं, डॉक्टर टॉर्च की तलाश में जुटे रहते हैं। सोचिये, ये हाल उस जिले का है, जिस जिले के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। ये उनके इलाके के सदर अस्पताल का हाल है। इससे पूर्व भी इस तरह की कई घटना हो चुकी है। ये कोई पहला मामला नहीं है। इसके पूर्व भी सदर अस्पताल में घंटों बिजली गुल रही। यहां तक की डीजल नहीं रहने के कारण एसएनसीयू में 45 मिनट बिजली गुल रही, जबकि उस वक्त यहां 7 बच्चे भर्ती थे।

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