यहां हुआ था होलिका का दहन, होली त्योहार का बिहार से खास कनेक्शन

पूर्णिया: होली त्योहार की तैयारियां पूरे देश में जोरों शोरो से चल रही है, लेकिन होली से पहले पूरे देश होलिका दहन की परम्परा है. कहा जाता है कि होलिका दहन के साथ ही लोग आपसी बैर और बुराइयों को भी उस अग्नि में जला देते हैं. होलिका दहन की कहानी भी बच्चे-बच्चे को पता है, लेकिन ये बात बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि होलिका दहन का नाता बिहार राज्य से है. क्योंकि होलिका का दहन कहीं और नहीं बल्कि बिहार के ही पूर्णिया जिले में हुआ था.

holika dahanसिकलीगढ़ धरहरा में होलिका का दहन

किवदंतियों की मानें तो होलिका राक्षस राज्य हिरणकश्यप की बहन थी, जो अपने भाई के कहने पर विष्णु भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए आग में बैठ गई, लेकिन अग्निदेव ने भक्त प्रह्लाद को बचा लिया और होलिका खुद आग में जलकर राख हो गई. मान्‍यता है कि इस त्‍योहार को मनाने की शुरुआत बिहार के पूर्णिया जिले से ही हुई थी. क्योंकि पूर्णिया जिले के बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में ही होलिका का दहन हुआ था. यहां आज भी होलिका दहन से जुड़े अवशेष बचे हैं. इतना ही नहीं भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए जिस खम्भे से भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था वो खंभा भी यहां मौजूद है.

भगवान नरसिंह के अवतार

जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर बनमनखी प्रखंड के धरहरा गांव में एक प्राचीन मंदिर है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यहीं भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए एक खंभे से भगवान नरसिंह ने अवतार लिया था. भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा जिसे माणिक्य स्तंभ कहा जाता है वो आज भी यहां मौजूद है. लोगों की मानें तो इसे कई बार इस खंबे को तोड़ने की कोशिश की गई. हालांकि ये टूटा तो नहीं, लेकिन ये स्तंभ झुक गया. भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा ये खंभा कभी 400 एकड़ में फैला था, आज ये घटकर 100 एकड़ में ही सिमट गया है. भगवान नरसिंह के इस मनोहारी मंदिर में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शंकर समेत 40 देवताओं की मूर्तियां स्थापित है.

सभी मुरादें होती हैं पूरी 

नरसिंह अवतार के इस मंदिर के दर्शन के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं. यहां हर साल धूमधाम से होलिका दहन होता है और यहां होलिका जलने के बाद ही दूसरी जगह होलिका जलाई जाती है. कहते हैं कि इस मंदिर में आने से श्रद्धालुओं की सभी मुरादें पूरी हो जाती है.

बुराई पर अच्छाई की जीत

मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता है वो ये कि जो भी भक्त यहां धुरखेल होली यानी राख और कीचड़ से होली खेलता हो उसकी मनोकामना सीधे भगवान तक पहुंचती है. कहा जाता है कि जब होलिका जल गई थी और प्रह्लाद चिता से सकुशल वापस आ गए थे तब लोगों ने राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगाकर खुशियां मनाई थीं. तभी से होली की भी शुरूआत हुई थी. ऐसे में होली के दिन इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु आते हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक इस त्योहार को धूम-धाम से मनाते हैं.

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