बिहार में जाति आधारित गणना से नीतीश को राजनीतिक फायदा, BJP को ऐसा क्यों लगता है?

बिहार: 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी विरोधी पार्टियों की एकजुटता के लिए लगातार कोशिश कर रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार में चल रही जाति आधारित गणना से राजनीतिक फायदा होगा। ऐसा बिहार में बीजेपी के ही नेता और विधानसभा में नेता विपक्ष विजय सिन्हा को लग रहा है। विजय सिन्हा ने यह बात सीधे नहीं कही है बल्कि स्कूली शिक्षकों की जातियों की गिनती में ड्यूटी लगने से चरमराई पढ़ाई-लिखाई को लेकर कही है।

बिहार में जाति आधारित गणना से नीतीश को राजनीतिक फायदा, BJP को ऐसा क्यों लगता है?विजय सिन्हा ने कहा है कि सीएम नीतीश कुमार अपने राजनीतिक फायदे के लिए छात्र-छात्राओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। सभी सरकारी शिक्षकों को जातीय गणना में लगा दिया गया है और स्कूलों में क्लास सीनियर छात्रों के भरोसे छोड़ दिया गया है। उन्होंने कहा कि दो साल कोरोना के कारण पढ़ाई बर्बाद हुई। इस साल उम्मीद थी कि बच्चे अच्छे से पढ़ाई कर पाएंगे लेकिन उसे भी बर्बाद कर दिया गया।

बिहार में जाति आधारित गणना का दूसरा और मुख्य चरण 15 अप्रैल से शुरू हो चुका है। बिहार के लोगों की जाति गिनने के इस काम में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है। इस वजह से कई जगह पढ़ाई ठप हो गई है। काफी जगहों पर सीनियर बच्चे जूनियर बच्चों की क्लास ले रहे हैं।

राजनीतिक मोर्चे पर देखें तो बिहार में जाति आधारित गणना की शुरुआत के बाद राष्ट्रीय राजनीति में मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने भी जातीय जनगणना का सुर पकड़ लिया है। पार्टी के नेता राहुल गांधी ने कर्नाटक चुनाव की एक सभा में कहा कि 2011 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने जनगणना में ओबीसी, एससी, एसटी की गिनती की थी लेकिन मोदी सरकार वो आंकड़े जारी नहीं कर रही है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक ने जातीय जनगणना को विभाजनकारी मानते हुए इसका समर्थन नहीं किया लेकिन वोट की राजनीति में पिछड़ रही कांग्रेस को लगता है कि जातीय जनगणना के जरिए वो ओबीसी के बीच फिर से अपनी पैठ बढ़ा सकती है।

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