बक्सर: जिले के ब्रह्मपुर प्रखंड अंतर्गत रघुनाथपुर गांव है, जिसको गोस्वामी तुलसीदास से जोड़ कर देखा जाता है. इस गांव को लेकर कहा जाता है कि यहां रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास 16वीं सदी में आकर विश्राम किया करते थे. गांव के पूर्वी छोर पर स्थित तुलसी स्थान परिसर में तुलसी दास की प्रतिमा भी मौजूद है. वहीं पुराने पीपल वृक्ष के नीचे तहखाना भी मौजूद हैं. जिसमें गेट बंद होने से कोई अंदर नहीं जाता है. आम तौर पर लोग इस गुप्त तहखाने को भुजबारा भी कहते है. ग्रामीण बतातें है कि तुलसी स्थान को लेकर मान्यता है कि गोस्वामी तुलसी दास यदि बनारस से पूर्व दिशा में यानी मगध साम्राज्य की ओर कभी आते थे तो रघुनाथपुर में रूककर आगे की यात्रा करते थे. यही पर यात्रा के दौरान पीपल वृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम करते थे. तुलसी स्थान परिसर में श्रीराम जानकी ठाकुरबाड़ी और विश्रामालय भी है. वहीं पास में एक प्राचीन सरोवर भी मौजूद है जो अतिक्रमण का शिकार हो चुका है.
ग्रामीण विंध्याचल मिश्रा ने बताया कि इस गांव का नामकरण भी तुलसीदास ने हीं किया था. उन्होंने बताया कि पूर्वजों के कथनानुसार पहले यहां दो गांव था. एक का नाम बेला था तो दूसरा का पत्र था. लेकिन तुलसीदास ने दोंनो गांव को मिलाकर रघुनाथपुर नाम रख दिया. उन्होंने बताया कि गांव के पूर्वजों का कहना था कि गोस्वामी तुलसीदास ने इसी रघुनाथपुर गांव में तुलसी स्थान पर रामायण के बारहवें अध्याय के अंश की रचना की थी. हालांकि उसका प्रमाण गांव में किसी के पास मौजूद है या नहीं, इसके बारे में लोग कुछ बता नहीं पाते हैं. विंध्याचल मिश्रा ने बताया कि तुलसी स्थान बेहद पावन और रमणीय स्थल है. यहां दशहरा पर्व के दौरान 10 हजार की संख्या में ग्रामीणों की भीड़ उमड़ती है और इसी स्थान से महावीरी झंडा जुलूस को निकालते हैं.
पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की उठी मांग
ग्रामीणों ने बताया कि इस इलाके में धान की खेती अच्छी होती थी, तो उस समय गांव के पूर्वज तुलसी दास को चूड़ा भी खिलाया करते थे. वहीं तुलसीदास ने चूड़ा की काफी तारीफ की और कहा कि ऐसा चूड़ा हमेशा होनी चाहिए. इसपर ग्रामीणों ने कहा कि गोस्वामी जी ये चूड़ा तो सुखाड़-मुआर यानी खराब फसल का चूड़ा है. वहीं तुलसीदास जी ने कहा कि फिर भी धान के खेत में तीन हिस्सा जहां अच्छी फसल होगी तो वहीं एक हिस्से में मुआर होगा, ताकि यह चूड़ा मिलता रहे. ग्रामीणों ने बताया कि जिला प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के अनदेखी के कारण इस महत्वपूर्ण स्थल का अस्तित्व खतरे में है. यदि इसको पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया जाए तो यहां रोजगार का अवसर श्रृजित हो सकता है.


