सीतामढ़ी: यह तो हम सभी जानते हैं कि गंगा नदी के पानी में कीड़ा नहीं लगता हैं. इसके कुछ वैज्ञानिक कारण भी है और लोगों की धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई है. विज्ञान के दृष्टिकोण से गंगा नदी के पानी में गंधक और सल्फर की प्रचुर मात्रा मौजूद है. साथ ही बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु गंगा के जल में मौजूद हानिकारक सूक्ष्म जीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं. जिससे पानी में पैदा वाले छोटे-छोटे कीड़े गंगाजल में नहीं पनप पाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी स्वयं गंगा हैं, जो स्वर्ग से चलकर आई है तो उस जल में भला कीड़े कैसे लगे. यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि माता जानकी की जन्मस्थली सीतामढ़ी में भी एक ऐसा कुंड है जिसके पानी में कीड़ा नहीं लगता है.

माता जानकी से जुड़ा हुआ है इस कुंड का इतिहास
सीतामढ़ी शहर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंतपाकर गांव में पाकड़ का एक पेड़ है. जिसका इतिहास रामायण काल यानी त्रेता युग से जुड़ा हुआ है. मान्यताओं के अनुसार माता सीता और श्री रामचंद्र विवाह के उपरांत बारात जब जनकपुर से अयोध्या के लिए चली थी तो प्रथम बार बारात यहीं रुकी थी. जिसका उल्लेख आनंद रामायण और बाल्मीकि रामायण में भी है. यहां के किंवदंती के अनुसार रात्रि विश्राम के बाद जब माता सीता दातुन करने के बाद कुल्ला की तो इस कुंड का निर्माण हुआ जो आज साक्ष्य के तौर पर मौजूद है. पाकड़ के पेड़ के नीचे होने के कारण कुंड में पत्ते गिरते रहते हैं. परंतु पत्ते के खराब होने के बावजूद भी कुंड के पानी में कीड़ा नहीं लगता है.

राम मंदिर निर्माण में यहां से भेजा गया है मिट्टी और जल
ग्रामीण शशि शंकर शाही ने बताया कि इस पवित्र जल को लोग दूर-दूर से आकर ले जाते हैं और अपने घरों में छिड़काव करते हैं. उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में सीतामढ़ी में अकाल की स्थिति में भी इस कुंड का पानी नहीं सूखा है. कई बार कुंड को साफ करने के लिए बोरिंग और दमकल के सहारे से पानी को निकाला गया, परंतु सुबह होते-होते फिर इसमें पानी भर जाता है. यहां के मुख्य पुजारी देवेंद्र सिंह ने बताया कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में भी यहां से जल और मिट्टी ले जाया गया है. उन्होंने बताया कि जब माता सीता के कुल्ले से इस कुंड का निर्माण हुआ है तो जल में कीड़ा कैसे लगेगा.