बांका : आज पूरा देश हिंदी दिवस मना रहा है। आजादी मिलने के बाद 1950 में हिंदी को देश की राजभाषा का संवैधानिक दर्जा मिला। लेकिन संविधान ने इसे राष्ट्रभाषा नहीं बनाया है। हिंदी की उपेक्षा यहीं से शुरु हो जाती है। सरकारी शिक्षा में बढ़ रहे वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की संख्या ने छात्रों की भाषा पर पकड़ भी कमजोर कर दी है। हिंदी भाषा में छात्रों का कमजोर हो जाना, उसकी पूरी शिक्षा की नींव ही कमजोर कर रही है। इसकी सबसे बड़ी सच्चाई यह भी कि सरकारी विद्यालय भी हिंदी शिक्षकों की कमी का रोना रो रहा है।
इंटरमीडिएट में 10 साल से नहीं हैं हिंदी के शिक्षक
बता दें कि इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए बांका में 203 स्कूल हैं। मगर इसमें केवल 22 शिक्षक ही हिंदी के हैं। वहीं, शहर के विद्यालयों की बात करें तो सबसे बड़े और पुराने प्रतिष्ठित आरएमके इंटर स्कूल में 10 साल से हिंदी के शिक्षक ही नहीं है। वहीं, एसएस बालिका को आठ साल बाद इंटर के हिंदी का शिक्षक मिला है। सार्वजनिक इंटर कालेज सर्वोदयनगर इंटरमीडिएट हिंदी शिक्षक का 10 साल से इंतजार कर रहा है। प्रखंड का पांचवां इंटर स्कूल ककवारा है। यहां भी इंटर की पढ़ाई शुरु होने के बाद कोई हिंदी शिक्षक नहीं आया है।
ग्रामीण इलाकों के विद्यालयों का हाल और भी खराब
कामोवेश यही हाल हाईस्कूल का भी है। शहर में ही एमआरडी,एसएस बालिका और सर्वोदयनगर स्कूल में पिछले कई साल से हिंदी शिक्षक का पद खाली है। यह हाल शहरी आबादी के बड़े सरकारी विद्यालयों का है, जबकि ग्रामीण इलाके के विद्यालयों का हाल इससे भी बुरा है। हिंदी शिक्षक राजेश कुमार, कुमार संभव, लेखनी कुमारी, प्रधानाध्यापक पूजा झा का कहना है कि भाषा विषय ठीक हुए बिना बच्चों की मजबूत नींव बनना मुश्किल है। भाषा में कमजोर बच्चा, किसी विषय में बहुत बेहतर नहीं हो सकता। जरूरी है भाषा विषयों के दक्ष शिक्षक की तैनाती कर बच्चों की भाषा ठीक की जाए। अभी बीपीएससी की बहाली में भी हिंदी शिक्षक बनने का आकर्षण नहीं दिख रहा है। इसके काफी कम आवेदन हैं। जब आवेदन हीं नहीं हैं तो शिक्षक कहां से मिलेंगे।