सीतामढ़ी: बिहार के सीतामढ़ी की धरती का अपना एक पौराणिक महत्व है. जिसका साक्ष्य आज भी मौजूद है. माता जानकी की जन्मस्थली से विख्यात इस नगरी का पहचान पूरे विश्व पटल पर है. ऐसी हीं पहचान गिरमिसानी स्थित बाबा हलेश्वर नाथ महादेव की हैं. सीतामढ़ी शहर से पांच किलोमीटर की दूरी पर गिरमिसानी गांव स्थित बाबा हलेश्वर नाथ महादेव मंदिर का इतिहास त्रेता युग यानि रामायण काल से जुड़ा हुआ है. माना जाता है कि मिथिला राज में जब अकाल पड़ा था तो यहीं से राजा जनक ने हल चलाने का कार्य प्रारंभ किया था. तभी इसी शिवलिंग की उत्पत्ति हुई थी. तब से यह लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है.

पंडित कन्हैया झा ने बताया कि राजा जनक ने गिरमिसानी गांव में हल चलाना शुरू किया था. हल चलाते हीं हल का पहला नोक शिवलिंग पर जा टकराया और फिर शिव जी स्वयं प्रगट हुए जो शुभ संकेत था. इसके बाद राजा जनक ने विधिवत पूजा-पाठ करने के बाद शिवलिंग को स्थापित किया गया. पंडित कन्हैया झा के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंग के बाद त्रयोदशी ज्योतिर्लिंग कहकर यहीं स्थापित शिवलिंग को पुकारा जाता जा सकता है. पंडित जी ने बताया कि यहां कई ऐसे चमत्कार भी हुए हैं जिससे लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है. उन्होंने बताया कि कई बार शिवलिंग से लिपटा शर्प देखा गया है. जिसको न तो कोई प्रवेश करते देखा है और न हीं बाहर निकलते. जब तक शिवलिंग पर शर्प रहता है तब तक कोई दर्शन करने भी नहीं जाते हैं. आंख से ओझल होते हीं शर्प अपने आप गायब हो जाता है, जो अपने आप में आश्चर्य है.
इस दिन पूजा करने पर मनोकामनाएं होती हैं पूरी
पंडित कन्हैया झा ने बताया कि यहां श्रावण मास के अलावा शिवरात्री और नर्क निवारण चतुर्दशी के दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. इसके अलावा सैकड़ो लोग रोजाना पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. वार रविवार और गुरुवार को श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ रहती है. ऐसी मान्यता है कि यह दोनों दिन शिवजी खुद आकर श्रद्धालुओं को दर्शन देकर आशीर्वाद देते हैं. आपने इससे पहले सुना होगा कि रविवार और सोमवार को शिव जी का दिन होता है. लेकिन यहां गुरुवार के दिन की मान्यता सबसे अलग है. सीतामढ़ी में स्थापित यह एक मात्र शिव मंदिर है, जहां सबसे अधिक श्रद्धालु आते हैं. यह बिहार के प्रमुख धार्मिक पर्यटक स्थलों में से एक है.
