बिहार: लोकसभा चुनाव के कैंडिडेट लिस्ट में जातिगत गणना का दिख रहा असर….

पटना. लोकसभा चुनाव की आहट के बीच राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करते जा रहे हैं. इस बार दिलचस्प बात यह सामने आ रही है कि राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों की लिस्ट में बिहार में जातिगत गणना का असर भी साफ-साफ दिखने लगा है. सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण को सेट करते हुए दिख रहे हैं. इसकी बानगी जदयू के संभावित लिस्ट से साफ-साफ झलकती है.

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दरअसल, जातिगत गणना के बाद बिहार में सबसे बड़ी जातीय समूह के तौर पर अति पिछड़ा समाज सामने आया है. उसके बाद OBC और दलित के साथ-साथ मुस्लिम और सवर्ण समाज. जाहिर है कि राजनीतिक दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है इस समीकरण को साधने की. जाति की राजनीति में बंटे वोटरों को मैसेज देने की. ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल इस समीकरण से बाहर जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है.

अभी तक जदयू के संभावित नाम जो सूत्रों के हवाले से आया है उसके मुताबिक, जदयू की पूरी कोशिश दिखती है कि जातीय समीकरण को साधा जाए. इसका बेहतर प्रयास जदयू ने गठबंधन के सहयोगियों को देखते हुए किया है. जदयू के जो संभावित उम्मीदवार हैं उसके मुताबिक- अति पिछड़ा समाज से पांच उम्मीदवार उतारे जा रहे हैं. लव कुश(कुर्मी-कोयरी) समाज से चार उम्मीदवार, जिनमें तीन कुशवाहा हैं. सवर्ण समाज से तीन उम्मीदवार उतारने की तैयारी है. जदयू यादव समाज से दो उम्मीदवारऔर दलित व मुस्लिम एक-एक उम्मीदवार उतार रहा है.

जाहिर है जदयू ने समाज के हर तबके को प्रतिनिधित्व देने वाला दल दिखने की कोशिश की है. इस समीकरण को उसके सहयोगियों को देखते हुए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के साथ आने के बाद दलित उम्मीदवार चिराग और मांझी की पार्टी भी उतरेगी, जिसकी चर्चा है. इससे दलित वोटरों को भी बड़ा मैसेज जाएगा. वहीं, बीजेपी के साथ आने के बाद बीजेपी भी सवर्ण अति पिछड़ा और ओबीसी और दलित उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है, जिससे जातिगत गणना के बाद उभरी सियासत को साधा जा सके.

कुछ ऐसी ही तैयारी महागठबंधन भी करने की पूरी कोशिश में है. आरजेडी के उम्मीदवारों की शुरुआती लिस्ट देखकर लगता है कि महागठबंधन एनडीए के कोर वोटरों को अपने पाले में करने की कवायद में जुट गया है. जब पूरी लिस्ट आएगी तब उसकी तस्वीर भी साफ हो पाएगी. लेकिन, इतना तय है कि कोई भी पार्टी जातिगत गणना के बाद उभरे जातीय परिस्थितियों से बाहर जाने वाला नहीं है.

 

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