पटना: नीतीश सरकार ने 8000 से अधिक पंचायत के जन प्रतिनिधियों को चुनावी साल में खुश करने के लिए बड़ा फैसला लिया है. बिहार के त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों को अब 4 महीने की जगह हर माह भत्ता दिया जाएगा. नीतीश सरकार ने फैसला लिया है कि बिहार के त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं और ग्राम कचहरी के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को नियमित मासिक भत्ता जिला स्तर से प्रति माह मिलेगा.

पंचायत प्रतिनिधि को मासिक भत्ता देने का निर्णय: जिला स्तर पर मेकर, चेकर और अप्रूवल आईडी बनाने के लिए कहा गया है ताकि पीएफएमएस के जरिए भत्ते का भुगतान सीधे खाते में किया जा सके. जिला पंचायत राज पदाधिकारी के नाम से बचत खाता खोलने और संबंधित प्रक्रिया को शीघ्र पूर्ण करने का निर्देश भी दिया गया है. अभी यह के पीएफएमएस के जरिये हर 4 महीने का अप्रैल, जुलाई और नवंबर माह में विभाग से जारी होता है.

भत्ता बढ़ाने पर कोई फैसला नहीं: पंचायती राज विभाग के निदेशक आनंद शर्मा ने दिसंबर 2024 से जिसका भुगतान अप्रैल 2025 में होना है. अधिकारियों को भत्ते के भुगतान जिला स्तर पर अभिलंब सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है. पंचायत प्रतिनिधियों की ओर से लंबे समय से विधायक और सांसद की तरह वेतन देने की मांग भी होती रही है लेकिन फिलहाल भत्ता बढ़ाने की सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है.

योजनाओं के कार्यान्वयन को मिलेगी गति: इसके साथ पंचायती राज संस्थाओं में योजनाओं के कार्यान्वयन की गति को तेज करने के लिए निविदा के माध्यम से कार्य करने पर भी सहमति बनी है. पंचायती राज विभाग ने फिलहाल जिला परिषदों में विभागीय स्तर पर योजनाओं का क्रियान्वयन निविदा से करने का आदेश जारी कर दिया है.

अब तक 15 लाख रुपये की लागत से कम की योजना का काम विभागीय स्तर से होता था. विभागीय सचिव देवेश सेहरा ने सभी डीडीसी को पत्र लिखकर बदलाव के संबंध में जानकारी दी है. डीडीसी ही जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी होते हैं.
चुनावी साल में फैसले का महत्व: विभागीय स्तर पर 12 मार्च को हुई बैठक में यह मामला सामने आया कि पंचायती राज संस्थाओं विशेष कर जिला परिषद में विभागीय स्तर पर हो रही योजनाओं के कार्यान्वयन की गति काफी धीमी है.

आवंटित राशि के संदर्भ में व्यय की स्थिति चिंताजनक है. केंद्र और सरकार की ओर से राशि तो पर्याप्त दी जा रही है लेकिन समय पर लोगों को उसका लाभ नहीं मिल रहा है. उसी के बाद यह फैसला लिया गया है. चुनावी साल में इस फैसले से योजनाओं को जमीन पर उतारने में मदद मिलेगी.