शिव जी सृष्टि के तीनों गुणों को नियंत्रित करते हैं. शिव जी स्वयं त्रिनेत्रधारी भी हैं. साथ ही शिव जी की उपासना भी मूल रूप से तीन स्वरूपों में ही की जाती है. तीनों स्वरूपों की उपासना के लिए सावन का तीसरा सोमवार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. इस तीनों स्वरूपों की उपासना करके सावन के तीसरे सोमवार को मनोकामनाओं की पूर्ति की जा सकती है. शिव जी के इन स्वरूपों की उपासना अगर प्रदो’ष काल में करें तो सर्वोत्तम होगा.

भगवान शिव का वह स्वरुप जिससे ग्रह नियंत्रित होते हैं – नीलकंठ
– समुद्र मंथन के दौ’रान जब ह’लाहल वि’ष निकला तो शिव जी ने मानवता की रक्षा के लिए उस वि’ष को पी लिया
– उन्होंने वि’ष को अपने कंठ में ही रोक लिया , जिससे उनका कंठ नीला हो गया.

– नीला कंठ होने के कारण , शिव जी के इस स्वरुप को , नीलकंठ कहा जाता है.
– इस स्वरुप की उपासना करने से श’त्रु बा’धा, षड़’यंत्र और तंत्र मंत्र जैसी चीज़ों का असर नहीं होता.
– सावन के सोमवार को शिव जी के नीलकंठ स्वरुप की उपासना करने के लिए , शिव लिंग पर गन्ने का रस की धारा चढ़ाएं
