बिन शराब जग लागे सूना … ककाजी कहिन /मनोज

*बिन शराब जग लागे सुना*

सूबे में शराब पर रोक क्या लगी। हाहाकार मच गया। जैसे पानी वैसे शराब। मानो यह संजीवनी जीवन को अमरत्व प्रदान कर जाएगी। जहाँ नलचापाकलों पर लाइन लगी है पेयजल को। वैसे ही लोग बटुआ लेकर भटक रहे शराब को। इसका महत्व आज समझ आयी लोगों को। जब छूट थी बोतल की सड़को पर फोड़ डालते थे। नालियों में बहाते थे। एक दूसरे पर पिचकारी बनाकर उड़ाते थे। शादीविवाह, मरनीहरणी, पूजापाठ, खुशी या गम सबका साथी था शराब।चाहे व्हिसकी या रम क्या आम क्या खास। क्या नौकर क्या साहेब। बंदी के बाद सबको अहसास है। आज शराब की बोतल कौन कहे बून्दबून्द की तलाश है।

बरामदे में बैठे कक्काजी ।अखबार का पन्ना पलट रहे थे। सुर्खियों में था शराब। बात कितना है लाजवाब। जब छूट था तब लूट थी। कोई पूछने वाला नही था। प्रतिबंध लग गया तब सबको आभास है। शराब की लोगों को हर सै में तलाश है।

हो भी क्यों ना। यह शराब ही था जिसने भेदभाव मिटा दी थी। एक मयखाने में हर जात को बैठा दी थी। यहां हर धर्म को जीने वाले थे। चाहे गम हो या खुशियाँ सभी पीने वाले थे। शराब था तो बाराती सजते थे।

बाराती झूमतेगाते घंटो ठुमके लगाते थे बिन शराब यह हालत किसको रास रहा! सच कहें तो बेचारे आज थोड़ेबहुत कमर भले मटका लेते हो। लेकिन नागिन डांस तो कहीं नज़र ही नही रहा आज बारात निकलते ही दरवाजे पहुँच रहा। लड़का की कौन कहें। लड़की वाला भी झेंप रहा। तब पीने का जोर था। हर बात पर शोर था। नाच आवे या ना आवे शराब नचाती थी। मिनटो का फासला घंटो में तय कर पाते थे। नशे में झूम नखरे दिखाते थे। बातबात से बनती तो ठीक अन्यथा तोड़फोड़, मारपीट, लातजूते खाकर बारात से अपने घर जाते थे।

शराब नही होने से उन क्लिनिको की परेशानी भी बढ़ गयी है। जहां शादीविवाह के मौसम में घायलों की भीड़ थी। चीखक्रन्दन मचता था।अपनों की पहचान को मारामारी थी। एक बेड पाने को रातजग्गा, होती पहरेदारी थी आज इंतज़ार हो रहा है। कब कहीं से एक घायल एडमिट हो जाये। कम से कम एसी,बिजली,पानी की लागत निकल आये।

गुलजार गली का हाल बेहाल है। यहाँ लोग हैं कि नही सबसे बड़ा सवाल है। सरकार ने जबसे शराब पर रोक लगाई है यहां वैसा बाजा बजता नही।लोग कहते हैं आजकल वैसा मुजरा सजता नही। पहले शौकीन खिंचे चले जाते थे। शौक से गाने फरमाते थे। घंटो चलती थी मस्तियां। गलबहियाँ। पीने वाले घरबार लुटाते थे। आज भी बोल वही। रानी, रेशमा, चंदा की वही थाप है। लेकिन शराब ने मारा ऐसा चाटा है। कि जो गली होता था सुबहोशाम गुलज़ार वहाँ पसरा आज मरघटी सन्नाटा है।

कितने रेस्तरां रातोंरात बंद हो गये। छोटीमोटी दुकाने शराब की भेंट चढ़ गये मनचलो की भीड़ अपने आप कम हो गयी। कितनी मोहनिया मेंटेनेंस में दुबली हो गयी है। बेबसी का आलम चहुँओर है। जीत देखो तित शराब का शोर है।

कक्काजी चिंतन में थे। कल तक उनके दरबार मे कितनी भीड़ थी, तब जश्नोंजाम का दौर था। लोग पैग पे पैग बनाते थे। कहकहे लगते थे। पत्ते बांँटतेबाँटते सुबह हो जाती थी। जब से शराब बंद किया कोई नज़र नही आता था। अब पता चला। यह उनकी चाह नही थी सब शराब का कमाल था। जब तक बोतल थी घर मे धमाल थातभी बिजली गुल हो गयी। वे चिल्लाते रहे। नौकरो का नाम ले लेकर दम घुटाते रहे। सांस थमने लगी जब रहा ना गया। आहे भरी! यह सन्नाटा क्यूँ है भाई।भुजंगी चहका शराब बिना जग सुना है साई…!

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