#BIHAR #INDIA : गंगा और उसकी सहायक नदियों में या उनके किनारे अब मूर्ति विसर्जन नहीं होगा। प्रतिमा निर्माण में पानी में अघुलनशील पदार्थ प्लास्टर ऑफ पेरिस, थर्मोकोल सहित अन्य का प्रयोग नहीं किया जाएगा। मूर्ति रंगने में सिंथेटिक पेंट और केमिकल का प्रयोग भी नहीं होगा। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है। मिशन के डायरेक्टर जनरल ने बिहार सहित कई राज्यों को जारी आदेश में इसका कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कराने को कहा गया है। आदेश न मानने वालों को 50 हजार रुपए पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में देने होंगे।

गणेश चतुर्थी, विश्वकर्मा पूजा, दुर्गा पूजा, दीपावली (लक्ष्मी और काली पूजा), छठ पूजा, सरस्वती पूजा आदि के मौकों पर अभी तक लोग गंगा और उसकी सहायक नदियों में ही मूर्ति विसर्जन करते रहे हैं। पूजा की बाकी सामग्री भी नदी में ही प्रवाहित कर दी जाती है। इसके कारण न सिर्फ गंदगी बल्कि नदियों में प्रदूषण बढ़ा है। इसे लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) गंभीर है। मूर्ति निर्माण में सिंथेटिक पेंट, डाई और अघुलनशील पदार्थों खासकर प्लास्टर ऑफ पेरिस सहित अन्य चीजों से मरकरी, क्रोमियम, लैड, कैडमियम, जिंक ऑक्साइड आदि पानी में पहुंचते हैं। इसका सीधा प्रभाव मानव और जलीय जीवन पर पड़ रहा है। मगर अब मूर्ति विसर्जन नदी या उसके किनारे पर नहीं होगा।

सभी निकायों को मूर्ति विसर्जन के लिए अलग से बनाने होंगे तालाब
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि विसर्जन के लिए सभी नगर निकायों को गंगा के किनारे अलग से तालाब खुदवाने होंगे। नदी और उसके किनारों की बेरीकेडिंग करानी होगी। मूर्ति विसर्जन के लिए निर्धारित स्थान पर निकायों को पर्याप्त संख्या में पात्र रखवाने होंगे, जिनमें पूजा सामग्री व अनन्य साज सज्जा की सामग्री डाली जा सके।

पूजा पंडालों में रखें तीन पात्र
पूजा पंडालों में भी तीन पात्र रखवाने के निर्देश दिए गए हैं। ताकि घुलनशील और अघुलनशील चीजों को अलग-अलग किया जा सके। पूजा संबंधी कोई भी सामग्री नदी में सीधे नहीं फेंकी जाएगी। जिला प्रशासन, शहरी निकाय, पुलिस, स्वयंसेवी संस्थाओं की कमेटी गठित करने के निर्देश दिए गए हैं। ताकि लोगों और पूजा समितियों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूक किया जा सके। हर त्योहार के सात दिन बाद इसकी रिपोर्ट देनी होगी।

यमुना में पहले से ही लगी है रोक
एनजी यमुना नदी में मूर्ति विसर्जन पर पहले ही रोक लगा चुकी है। रोक संबंधी आदेश एनजीटी ने वर्ष 2015 में जारी किया था। अब गंगा और उसकी सहायक नदियों में भी विसर्जन प्रतिबंधित कर दिया गया है।