छठ पूजा 2019: महापर्व छठ पूजा का है विशेष महत्व, जानें इस पर्व से जुड़ी हर बात…

पांच दिवसीय दिवाली पर्व के ठीक छठवें दिन सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा शरू होती है। इस पूजा की तैयारी जो’रो-शो’रो से चल रही है। पूर्वी भारत में मनाए जाने वाले इस पर्व का मुख्य केंद्र बिहार रहा है लेकिन समय के साथ-साथ यह पर्व केवल पूरे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। हिंदी कैलेण्डर के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक इस महापर्व को मनाया जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार पर पूरा परिवार एक साथ इकट्ठा होता है और इसे धू’मधाम से मनाता है।कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होने वाले इस महापर्व को छठ पूजा, छठी माई, सूर्य षष्ठी पूजा छठ, छठ माई पूजा, डाला छठ, आदि कई नामों से जाना जाता है। इस बार छठ पूजा की शुरुआत 31 अक्टूबर से हो रही है। छठ पूजा के पहले दिन नहाय-खाय होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पहले तन और मन दोनों साफ होने चाहिए।

नहाय-खाय के दिन व्रती स्नान कर नए कपड़े पहनते हैं और शुद्ध सात्विक भोजन करते हैं। इस दिन चने की दाल और लौकी की सब्जी खाने का विशेष महत्व है।नहाय-खाय के बाद दूसरे दिन खरना होता है। खरना के दिन व्रती दिन भर कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं। शाम में व्रत धारियों के द्वारा गुड़ वाली खीर विशेष प्रसाद के तौर पर बनाया जाता है। पूजा-पाठ करने के बाद व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। व्रत धारियों के प्रसाद ग्रहण करने के बाद घर के सभी सदस्यों को यह प्रसाद दिया जाता है। इसी दिन व्रती अगले दिन की पूजा के लिए भी प्रसाद बनाते हैं। इस बार खरना 1 नवंबर को है।हिंदू धर्म में उगते हुए सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है। लेकिन छठ पूजा के दौ’रान डू’बते हुए सूर्य की पूजा की जाती है।

व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम में पूजा की तैयारी करते हैं। नदी या तलाब में व्रती खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती अगले दिन की पूजा के तैयारी में लग जाते हैं। इस बार यह अर्घ्य 2 नवंबर को दिया जाएगा।छठ पूजा के चौथे दिन यानी सप्तमी तिथि को पूजा का समापन होता है। इस दिन उगते हुए हुए सूर्य की पूजा की जाती है। 3 नवंबर को इस बार व्रत का समापन है। सूर्य के उपासना के बाद वहां मौजूद लोगों को प्रसाद दिया जाता है।

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