आठवीं पास पर आईएएस अधिकारियों को देती हैं ट्रेनिंग

बिहारशरीफ की ढाई दर्जन से अधिक महिलाएं खुद छठी से आठवीं तक पढ़ी हैं लेकिन, आईएएस व अन्य अधिकारियों को ट्रेनिंग देती हैं। जीविका समूह से जुड़ीं ये महिलाएं देश के आठ राज्यों में काबिलियत मनवाने में सफल रही हैं। पर्दे में रहने वाली ये महिलाएं मासिक 42 हजार तक की कमाई भी कर लेती हैं।

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अधिकारियों को स्वयं सहायता समूह, ग्राम संगठन व संकुल स्तरीय समिति, क्लस्टर लेवल फेडरेशन निर्माण के गुर बताती हैं। वहीं, बैंक के उच्चाधिकारियों को लोन देने, समय पर वापस लेने, लोन के रुपयों के सदुपयोग की बारीकियां सिखाती हैं।

कई बैंकों में ये कोर कमेटी में भी शामिल हैं। ये आला अधिकारियों के साथ बैठकर बैंकों के संचालन व उनकी बेहतरी की रणनीति तय करती हैं। जीविका की मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी बालामुरुगन डी कहती हैं कि  दर्जनों महिलाओं ने कई राज्यों के आईएएस समेत संबंधित आलाधिकारियों को ट्रेनिंग दी है। उन्हें स्वयं सहायता समूहों से उसके  स्थायी संचालन व महिलाओं को घरों से बाहर लाकर स्वरोजगार से जोड़ने तक के गुर बताये हैं।

ग्रामीण विकास विभाग  के प्रधान सचिव अरविंद कुमार चौधरी का कहना है कि ऐसी कई महिलाएं हैं जो छठी से आठवीं पास हैं। लेकिन, उनका अनुभव इतना कि उन्होंने बैंकिंग के कार्यों में महारत हासिल कर ली है। लोन देने व वसूली के ऐसे तरकीब उनके पास हैं कि अधिकारियों के लिए भी वे प्रेरणास्रोत बन गयी हैं।

वर्ष 2008 में बिहार ने सूबे के छह जिलों नालंदा, पूर्णिया, खगड़यिा, गया, मुजफ्फरपुर व मधुबनी तो बाद में पूरे सूबे में जीविका कार्यक्रम की शुरुआत की।

महिलाओं का संगठन बनाकर पांच रुपये मासिक बचत की आदत डलवायी। फिर बैंकों से जोड़ा। पहले 20 हजार तक तो बाद में डेढ़ लाख तक के लोन दिये। दीगर प्रक्रिया यह कि ये समूह की महिलाएं ही लोन देतीं। वापस लेतीं। सूद भी खुद तय करतीं। बैंकिंग प्रोसेसिंग व लेखा बही भी खुद लिखतीं। हर गांव में चार से 20 ऐसी महिलाओं को और बेहतर करने की सीख दी गयी। जीविका समूह से जुड़ीं महिलाएं गांवों में मौन क्रांति की वाहक बनी हैं। ये महिलाएं स्वयं सहायता समूह समेत कई संगठनों की बारीकियां समझती हैं। बिहार में 10 लाख 63 हजार स्वयं सहायता समूह हैं। 1.25 करोड़ परिवार ने जीविका से जुड़कर आर्थिक तंगी से निजात पाए हैं।

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