बगहा। समस्तीपुर के पूसा स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित नरकटियागंज कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक सह अध्यक्ष डॉ. आरपी सिंह ने पराली या अन्य फसल अवशेष जलाने के संबंध में किसानों को सलाह देते हुए कहा है कि गेहूं तथा गन्ने की कटाई के बाद अवशेषों को खेतों में कदापि ना जलाएं। इससे पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ मृदा स्वास्थ्य एवं जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
अवशेष जलाने से नुकसान डॉ. सिंह ने कहा कि फसल अवशेष जलाने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, कार्बन मोनोक्साइड आदि गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। खेतों में आग लगाने से मृदा की सतह का तापमान 50 से 55 डिग्री सेंटीग्रेड हो जाता है। ऐसी दशा में मिट्टी में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणु जैसे- बैसिलस सबटिलिस, स्यूडोमोनास ल्युरोसेंस, एग्रोबैक्टेरियम रेडियोबेक्टर, राइजोबियम प्रजाति, एजेटोबैक्टर प्रजाति, एजोस्पिरिलम प्रजाति, सेराटिया प्रजाति, क्लेबशीला प्रजाति, बैरियोबोरेक्स प्रजाति आदि नष्ट हो जाते हैं।
ये सूक्ष्म जीवाणु खेतों में डाले गए खाद एवं उर्वरक को तत्व के रूप में घुलनशील बनाकर पौधों को भोजन उपलब्ध कराते हैं। जबकि फसल अवशेषों को जलाने से उपरोक्त सभी सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं। इनके नष्ट हो जाने से पौधों में खाद एवं उर्वरकों की आपूर्ति समुचित रूप से नहीं हो पाता है। जिसके कारण फसल उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
वैज्ञानिक ने बताया कि फसल अवशेषों जलाने से मित्र किट नष्ट हो जाते हैं। जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। साथ ही फसल अवशेषों में आग लगाने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है जिससे धान में झुलसा रोग तथा झोंका रोग का प्रकोप अधिक होता है। ऐसा इसलिए होता है कि कार्बन डाइऑक्साइड बढऩे से फसलों का बायोमास बढ़ जाता है। जिससे कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ जाती है तथा रोगों एवं कीटों का प्रकोप अधिक होने लगता है।
गेहूं व गन्ना की कटाई के बाद फसल अवशेषों को ना जलाएं। धान के खेतों में रोटावेटर व कृषि यंत्रों के माध्यम से जुताई कर खेत में मिला दें तथा गन्ने के खेत में पड़ी हुई सूखी पत्तियों को उसी में बिछावन के रूप में रहने दें। यदि किसान उसको वेस्ट डीकंपोजर डालकर खेतों में सड़ा दें तो गन्ने की फसल बहुत ही अच्छी होगी। उन्होंने कहा कि गेहूं की कटाई के तुरंत बाद भूसा बनाने वाली मशीन चला कर भूसा बना सकते हैं। फसल कटाई के बाद घास, फूस, पत्तियां, ठूंठ, फसल अवशेषों को सड़ाने के लिए 20 से 25 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से बिखेर कर नमी की दशा में कल्टीवेटर या रोटावेटर की मदद से मिट्टी में मिला देना चाहिए अथवा नमी की दशा में प्रति एकड़ की दर से 1000 लीटर पानी में वेस्ट डीकंपोजर के घोल का छिड़काव करें
(एक ड्रम में 200 लीटर पानी में गोबर की खाद गुण और छाछ के घोल में एक सीसी वेस्ट डीकंपोजर डालकर तीन से पांच दिन तक रखने के बाद प्रयोग करें)। इस प्रकार अवशेष खेतों में विघटित होकर मिट्टी में मिल जाते हैं और जीवाणुओं के माध्यम से ह्यूमस में बदलकर खेत में पोषक तत्व जैसे नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर आदि तथा कार्बन तत्व की मात्रा को बढ़ा देते हैं।
