JDU के यूनीफॉर्म सिविल कोड विरोध पर RJD ने साधा निशाना, मनोज झा बोले- यह मात्र दिखावा

समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से आए बयान के बाद बीजेपी और जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) बिहार में आमने-सामने हैं। बीजेपी जहां समान नागरिक संहिता लागू करने की वकालत कर रही है। वहीं, जेडीयू बिहार में इसे नहीं लागू होने देने की बात कही है।

उन्होंने कहा कि पिछले चार वर्षों में अलग-अलग मुद्दों पर चाहे धारा 370 हो, ट्रिपल तलाक हो या राम मंदिर को लेकर जो ऊहापोह की स्थिति थी और जिन-जिन चीजों पर जेडीयू कहा करता था कि यह नॉन निगोशिएबल है, तो अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के समय में चल गया। लेकिन उसके बाद तो सदन के भाषणों को उठा कर देखा जाए तो जेडीयू ने प्रतीकात्मक विरोध तक नहीं किया।

मनोज झा ने कहा कि जब यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात करते हैं तो हम लोग संविधान सभा की बैठकों का रेफ्रेंस देंगे। आखिर क्या वजह थी कि वर्ष 1947 में बावजूद इसके कि बाबा साहब चाहते थे, पंडित नेहरू भी चाहते थे यह क्यों नहीं हुआ, क्योंकि उन्होंने देखा कि जब तक एक दूसरे के प्रति भरोसे का माहौल नहीं बनता है तब तक यह काउंटरप्रोडक्टिव हो जाती है और हाल के वर्षों में तो भरोसे का और भी कत्ल हुआ है।

 

समुदायों के बीच में दीवारें, लहूलुहान कर देने वाले कंटीले तार, जब तक नहीं खत्म करेंगे तब तक यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसी चीजों पर चर्चा भी नहीं कर सकते. लेकिन नीतीश कुमार और उनकी पार्टी वही करेगी जो उन्होंने इस तरह के मुद्दों पर बीते चार वर्षों में किया है।

‘इफ्तार पार्टी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आना मैत्रीपूर्ण’

बिहार में बदलते सियासी घटनाक्रम पर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इफ्तार पार्टी में राबड़ी देवी के आवास पर जाने को लेकर कई तरह की लग रही अटकलों पर मनोज झा ने विराम लगाते हुए कहा कि होली, दिवाली, इफ्तार आदि स्नेहपूर्ण अवसर होते हैं उसमें मुख्यमंत्री या किसी अन्य व्यक्ति का आना मैत्रीपूर्ण है. नीतीश कुमार अगर इस तरह की धारा की संभावना ढूंढेंगे तो उन्हें बहुत सारे डिलीट बटन दबाने होंगे, सार्वजनिक जीवन में डिलीट बटन इतनी आसानी से नहीं दबता है।

आरजेडी के सांसद  ने कहा कि चीजें बहुत आगे निकल गई हैं।  दो धाराएं परस्पर एक दूसरे के सामने खड़ी हैं जिसका संदेश बीते विधानसभा चुनाव में देखने को मिला था. यह अलग बात है कि आपने जनादेश के उभार को मैनिपुलेटिव शासनादेश से थोड़ी देर के लिए दबा दिया. लेकिन जब दो धाराओं के बीच की आर- पार लड़ाई है तो जाहिर है नीतीश कुमार उस धारा के समक्ष (सामने) जो हमारी विपरीत धारा है आत्मसमर्पण की मुद्रा में हैं. उसके बाद संभावनाएं कतई नहीं बचती हैं.

 

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