मुजफ्फरपुर। कटरा प्रखंड के अम्मा गांव की जाह्नवी लोगों के बीच जाकर बेटियों के प्रति लोगों को जागरूक करती है। गांव-गांव घुमकर लोगों को बताती है कि बेटियों के बिना घर-परिवार और समाज में संतुलन नहीं बनाया जा सकता। वर्ष 2018 में जाह्नवी अभियान की शुरूआत की। जब जाह्नवी पिता संतोष कुमार के साथ किसी परिचित के यहां बेटी होने पर उनके साथ अस्पताल गई थी।
तब वह सिर्फ ग्यारह वर्ष की थी। बेटी होने पर लोगों को मायूस देखा। पुरुषवादी समाज में बेटियों को कमतर आंकने की बात जाह्नवी के अंदर घर कर गई। इसके बाद जाह्नवी ने ठान लिया कि समाज में बेटे-बेटियों के भेद को मिटाना है। मुजफ्फरपुर के अलावा सीतामढ़ी, बेगूसराय और बेतिया के एक दर्जन से अधिक गांवों में अभियान चला चुकी हैं।
इसमें उनके सामाजिक कार्यकर्ता पिता का भी सहयोग मिलता है। पांच हजार से अधिक लोगों से कर संवाद कर चुकी है। जाह्नवी ने अभियान की शुरुआत अपने ही गांव से की थी। माता-पिता का सहयोग मिला तो हौसला बढ़ा। 11 साल की बच्ची का लैंगिक समानता पर संवाद लोगों को प्रभावित कर रहा था। उसने दहेज के लिए रुपये जमा करने की जगह उसे शिक्षा में निवेश करने की सलाह दी।
उन्हें सक्षम बनाने के प्रति जागरूक किया। अभी तक वे पांच हजार से अधिक लोगों से संवाद कर चुकी हैं। भेदभाव व हिंसा पर लिखी पुस्तक लड़कियों के साथ भेदभाव व हिंसा पर जाह्नवी ने ‘शिरोज : ब्रेकिंग स्टोरियोटाइप्स’ पुस्तक की रचना की है। पांच महीने में इसकी 800 से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं।
उन्हें संयुक्त राष्ट्र फाउंडेशन की ओर से 2020 में गर्ल अप ग्रांट और 2021 में गर्ल अप स्कालरशिप मिल चुकी है। इस साल भी संयुक्त राष्ट्र फाउंडेशन ने विश्व के 175 देशों में इस क्षेत्र में कार्य कर रहीं 20 लड़कियों में जाह्नवी का चयन किया है। 29 जुलाई को कनाडा में लैंगिक समानता पर होनेवाले कांफ्रेंस के लिए भी उन्हें आमंत्रित किया गया है।
