जमुई : शराब की लत भी अजीब होती है। शाम ढलते ही पीने की तलब होने लगती है। फिर क्या पदाधिकारी और कर्मचारी, सभी शराब की खोज में लग जाते हैं। चाहे देसी मिले या विदेशी, शराब चाहिए जरूर। शराब पीने की इसी लत ने बिहार में लागू शराबबंदी कानून को भी तार-तार कर दिया है। शनिवार को एक विभाग के पदाधिकारी और उनकी टोली शराब की खोज में उग्रवाद प्रभावित आदिवासी गांव पहुंच गए। रात को करीब नौ बजे पहुंची इस टोली ने एक आदिवासी के घर पर दस्तक देते हुए शराब की मांग की। शराब नहीं मिलने पर इन्होंने जमकर हंगामा काटा। यही नहीं, घर की एक महिला के साथ छेड़छाड़ करते हुए उसकी पिटाई कर दी।शराबबंदी विफल

इनकी पिटाई से महिला बुरी तरह घायल हो गई। इसके बाद विभाग के पदाधिकारी की इस करतूत से ग्रामीण आक्रोशित हो गए। ग्रामीणों ने पूरी टोली को घेर लिया और शराब पीने की चाहत को कुछ मिनट में ही उतार दिया। किसी तरह सभी ने मौके से भागकर अपनी जान बचाई। इस दौरान झाझा पुलिस से भी मदद की गुहार लगाई गई। लेकिन नक्सल प्रभावित इलाका होने के कारण पुलिस विलंब से पहुंची। आक्रोशित ग्रामीणों ने झाझा थाना पहुंच मामले की जानकारी दी। साथ ही घायल महिला का इलाज स्थानीय रेफरल अस्पताल में कराया।

बताया जाता है कि वन विभाग के अधिकारी अपने अधिनस्थ पदाधिकारी एवं वनकर्मी के साथ रात के नौ बजे गांव के एक घर पर पहुंचे थे। वनकर्मियों ने शराब की मांग प्रारम्भ कर दी, जिसपर दंपत्ति ने शराब नहीं होने की बात कह उनसे विनती की गई। इसके बाद वन कर्मियों ने घर मे उत्पात मचाना प्रारम्भ कर दिया। सभी कर्मी आग बबूला हो गए और घर मे रखी लकड़ी आदि को जब्त कर वन अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने की बात करने लगे। घायल महिला ने बताया कि वनकर्मियों ने उसके साथ छेड़खानी की। विरोध करने पर सभी मारपीट करने लगे।

इस दौरान हल्ला होने पर गांव के लोगों ने सभी वनकर्मी को घेर लिया। घेराबंदी होते देख वनकर्मी ने इसकी सूचना झाझा पुलिस को दी, बावजूद पुलिस नहीं पहुची। किसी तरह मारपीट करते हुए वनकर्मी अपनी जान लेकर भागे। रात में ही गांव के लोगों ने वनकर्मी के मारपीट एवं छेड़खानी के मामले को लेकर थाना पहुंचे। घटना की सूचना झाझा पुलिस को दी। इसके बावजूद कोई करवाई नहीं होने पर रविवार को ग्रामीणों ने वन विभाग के कार्यालय पहुंच दोषी वनकर्मी को बर्खास्त करने एवं जेल भेजने की मांग कर रहे थे। सभी ग्रामीण जन संघर्ष मोर्चा के संयोजक बिनोद कुमार यादव उर्फ फुटल कपार के नेतृत्व में कार्यालय के पास धरना पर बैठ गए।

संयोजक ने कहा कि एक दर्जन वनकर्मी को फोरेस्टर अनीश कुमार एवं एक पदाधिकारी नेतृत्व कर रह थे। सभी को शराब की लत लग गई है। शराबबंदी में भी ऐसे कर्मी शराब की खोज करते है। नहीं देने पर गरीब पर अत्याचार किया जाता है। उन्होंने कहा कि थाना में वनकर्मी के विरुद्ध मामला नहीं लिया गया। जबतक न्याय नहीं मिल जाएगा, तबतक इसके विरुद्ध आंदोलन जारी रहेगा। इस दौरान नारगंजो गांव के शिवनाथ मरांडी, सुनील किस्कू, सुमन वास्के, खेड़ वास्के, अनिता हेम्ब्रम, छोटकी बेसरा, प्रकाश सोरेन सहित दर्जनों आदिवासी ग्रामीण घरना पर बैठे हुए थे। ज्ञात हो कि झाझा वन विभाग के अधिकारी अपने कारनामों के कारण सुर्खियों में हैं। अभी नारगंजो कर्मा पहाड़ से मोरेंग एवं पत्थर के उठने का मामला ठंडा भी नही हुआ था कि शनिवार की रात्रि शराब की खोज करते आदिवासी के घर पहुंच गए। शराब नहीं मिलने पर उत्पात मचाया। मामला तूल पकड़ लिया है। इस मामले में वनकर्मी ने बताया कि जंगल से लकड़ी काट कर जमा किए लकड़ी को जब्त करने गए थे। ग्रामीणों ने घेर लिया पुलिस से मदद मांगे लेकिन कोई मदद नही मिला। उन्होंने छेड़खानी एवं मारपीट के अलावा शराब की बात को झूठा करार दिया।