कई देशों में कोरोना के हल्के लक्षणों से जूझ रहे लोगों को पैक्सलोविड टैबलेट दी जा रही है। इसे अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर ने बनाया है। अप्रैल में इस टैबलेट को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) से भी मंजूरी मिल गई है। हालांकि अब खबरें आ रही हैं कि कुछ मामलों में इस गोली को खाकर ठीक होने के बाद मरीजों में कोरोना संक्रमण लौट रहा है।न्यूज एजेंसी AP की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में कोरोना मरीजों के लिए पैक्सलोविड टैबलेट एक घरेलू सुविधा बन गई है। एक तरफ, सरकार ने पैक्सलोविड को खरीदने के लिए अब तक 10 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं। इससे 2 करोड़ लोगों का इलाज हो सकता है। दूसरी तरफ, हेल्थ एक्सपर्ट्स अब इस ड्रग के कारगर होने यानी एफिकेसी पर सवाल उठा रहे हैं।

पैक्सलोविड टैबलेट को नियम से 5 दिन खाने के बाद भी कुछ मरीजों में संक्रमण लौट रहा है। इससे दो तरह के सवाल उठ रहे हैं। पहला- क्या मरीज दवा खाने के बाद भी संक्रमित हैं। दूसरा- क्या मरीज को पैक्सलोविड का पूरा कोर्स दोबारा करना चाहिए।अमेरिकी एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) कहती है- मरीजों को टैबलेट के डबल कोर्स से बचना चाहिए। दरअसल, जिन लोगों में कोरोना के लक्षण लौटते हैं, उन्हें गंभीर संक्रमण और अस्पताल में भर्ती होने का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे में सबसे पहले डॉक्टर की सलाह जरूरी है।फाइजर कंपनी ने पैक्सलोविड टैबलेट के क्लिनिकल ट्रायल तब किए थे, जब पूरी दुनिया डेल्टा वैरिएंट से जूझ रही थी। उस वक्त ज्यादातर लोगों को वैक्सीन भी नहीं लगी थी। फाइजर ने अपने ट्रायल में पैक्सलोविड को ऐसे कोरोना मरीजों पर टेस्ट किया था जिन्हें पहले से वैक्सीन नहीं लगी थी, जो गंभीर संक्रमण से पीड़ित थे और जो दिल की बीमारी और डायबिटीज जैसे रोगों की चपेट में थे। इस ड्रग ने मरीजों के हॉस्पिटलाइजेशन और मौत के खतरे को 7% से 1% पर पहुंचा दिया था।

आज हालात अलग हैं। अमेरिका में लगभग 90% लोगों को वैक्सीन की पहली डोज दी जा चुकी है। 60% अमेरिकी कम से कम एक बार कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। वैक्सीनेटेड लोगों के हॉस्पिटलाइजेशन की दर वैसे ही 1% से नीचे है। ऐसे में पैक्सलोविड टैबलेट का उन पर कितना असर हो रहा है, इस पर हेल्थ एक्सपर्ट्स सवाल उठा रहे हैं।बोस्टन के वीए हेल्थ सिस्टम के डॉ. माइकल चारनेस ने बताया- पैक्सलोविड काफी इफेक्टिव ड्रग है, लेकिन शायद यह ओमिक्रॉन वैरिएंट के सामने कमजोर पड़ जाता है। यही वजह है कि कुछ मरीजों में कोरोना के लक्षण दोबारा आने लगते हैं। उधर, FDA और फाइजर दोनों का ही कहना है कि टैबलेट पर हुई ओरिजिनल रिसर्च में भी 1-2% लोगों को संक्रमण से ठीक होने के 10 दिन बाद कोरोना के लक्षण लौटने की समस्या हुई थी।

जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के एंडी पेकोस्ज के मुताबिक हो सकता है कि पैक्सलोविड टैबलेट वायरस के लक्षण दबाने में पहले की तरह कारगर नहीं रही। उन्हें डर है कि इसके कारण मरीज के शरीर में कोरोना की नई स्ट्रेन्स पनप सकती हैं, जो पैक्सलोविड को मात देकर भविष्य में खतरनाक साबित हो सकती हैं।मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के रिसर्चर डेविड बोलवेयर कहते हैं- अगर अमेरिकी सरकार इस टैबलेट पर इतना खर्च कर रही है तो फाइजर को नई रिसर्च करके डेटा सरकार के साथ शेयर करना चाहिए और महामारी के खिलाफ सही पॉलिसी बनाने में मदद करनी चाहिए।

फाइजर ने हाल ही में बताया कि कोरोना से पीड़ित मरीजों के परिजनों को भी पैक्सलोविड देने से उनके संक्रमित होने का खतरा कम नहीं हो रहा है। कंपनी पिछले साल यह भी साफ कर चुकी है कि पैक्सलोविड कोरोना मरीजों के लक्षण दबाने और हॉस्पिटलाइजेशन कम करने में फेल होती नजर आ रही है। इसलिए वह कोरोना के नए वैरिएंट्स और वैक्सीनेटेड लोगों पर पैक्सलोविड टैबलेट के असर को स्टडी कर रही है। स्टडी में यह भी पता चलेगा कि यह टैबलेट कोरोना इन्फेक्शन की गंभीरता और वक्त को कम कर पा रही है या नहीं।
