मैरिटल रे’प पर बंटे जज:एक जज बोले- पत्नी से ज’बरन सं’बंध बनाने पर पति को सजा हो; दूसरे ने कहा- यह गै’रकानूनी नहीं

मैरिटल रेप को लेकर बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। फैसला सुनाते समय हाईकोर्ट के दोनों जजों ने इस पर अलग-अलग राय जाहिर की। हाईकोर्ट के जस्टिस शकधर ने कहा IPC की धारा 375, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। वहीं जस्टिस सी हरिशंकर ने कहा कि मैरिटल रेप को किसी कानून का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। बेंच ने याचिका लगाने वालों से कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं।

मैरिटल रेप, यानी पत्नी की सहमति के बिना उससे संबंध बनाने के मामले में 21 फरवरी को कोर्ट ने NGO आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन और दो व्यक्तियों द्वारा 2015 में दायर की गई जनहित याचिकाओं पर मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था।

महिलाओं के साथ गैर बराबरी है मैरिटल रेप
IPC की धारा 375 का अपवाद 2 मैरिटल रेप को अपराध से मुक्त रखता है। यह कहता है कि पति का पत्नी के साथ संबंध बनाना रेप नहीं है। याचिका में इस आधार पर अपवाद को खत्म करने की मांग की गई थी कि यह उस तथ्य के साथ भेदभाव करता है, जिसमें विवाहित महिलाओं का उनके पतियों ने यौन शोषण किया था।

मैरिटल रेप अपराध न माना जाए- केंद्र सरकार
केंद्र ने मैरिटल रेप को अपराध मानने का विरोध किया था। 2017 में केंद्र ने कोर्ट में कहा था कि भारत आंख बंद करके पश्चिम का अनुसरण नहीं कर सकता। न ही वह मैरिटल रेप को क्राइम घोषित कर सकता है। इस बार की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि वह 2017 में केंद्र सरकार द्वारा दिए गए रुख पर विचार करेगी।

शादी क्रूरता का लाइसेंस नहीं- कर्नाटक हाईकोर्ट
मैरिटल रेप पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि शादी क्रूरता का लाइसेंस नहीं है। शादी समाज में किसी भी पुरुष को ऐसा कोई अधिकार नहीं देती कि वह महिला के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करे। अगर कोई भी पुरुष महिला की सहमति के बिना संबंध बनाता है या उसके साथ क्रूर व्‍यवहार करता है, तो यह दंडनीय है। चाहे फिर पुरुष महिला का पति ही क्यों न हो।

हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान में सबको समानता का अधिकार है। ऐसे में पति शासक नहीं हो सकता, यह सदियों पुरानी सोच और परंपरा है कि पति उनके शासक हैं। विवाह किसी भी तरह से महिला को पुरुष के अधीन नहीं करता। संविधान में सबको सुरक्षा का समान अधिकार है।

जनवरी 2022 में दोबारा शुरू हुई थी सुनवाई
जनवरी 2022 में जब सुनवाई फिर से शुरू हुई तब सरकार ने कोर्ट से कहा कि मैरिटल रेप को तब तक क्राइम नहीं बनाया जा सकता जब तक कि सभी पक्षों के साथ चर्चा पूरी नहीं हो जाती। इसके लिए क्रिमिनल लॉ में बड़े बदलाव करने होंगे, न कि टुकड़ो में। 7 फरवरी को कोर्ट ने केंद्र को दो हफ्ते का वक्त दिया था। तब केंद्र से जवाब न मिलने के कारण बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

दुनिया ने कब माना मैरिटल रेप को अपराध?
जोनाथन हेरिंग की किताब फैमिली लॉ (2014) के मुताबिक, ऐतिहासिक रूप से दुनिया के अधिकांश हिस्सों में ये धारणा थी कि पति पत्नी का रेप नहीं कर सकता, क्योंकि पत्नी को पति की संपत्ति माना जाता था। 20वीं सदी तक अमेरिका और इंग्लैंड के कानून मानते थे कि शादी के बाद पत्नी के अधिकार पति के अधिकारों में समाहित हो जाते हैं। 19वीं सदी की शुरुआत में नारीवादी आंदोलनों के उदय के साथ ही इस विचार ने भी जन्म लिया कि शादी के बाद बनने वाले पति-पत्नी के सेक्स संबंधों में महिलाओं की सहमति का अधिकार उनका मौलिक अधिकार है।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Discover more from Muzaffarpur News

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading