बिहार में 17 साल में 1% कम हुई प्रजनन दर:स्वास्थ्य विभाग ने अब जनसंख्या नियंत्रण पर शुरू किया मंथन, बढ़ती आबादी की सता रही चिंता

कोरोना ने बिहार के हेल्थ सिस्टम की पोल खोल दी है। दूसरी लहर में तो सरकारी दावों की पोल खुल गई। सरकार संसाधन बढ़ाने के बजाए अब जनसंख्या को लेकर परेशान है। स्वास्थ्य विभाग जन संख्या नियंत्रण को लेकर मंथन कर रहा है। लगभग 17 साल में एक प्रतिशत कम हुई प्रजनन दर को और कम करने पर मंथन किया जा रहा है।

आबादी से सरकारी खजाने पर बोझ

स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय की माने तो आबादी बढ़ने से सरकार के खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। ऐसे में हर तरह की व्यवस्था प्रभावित होती है। स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि आजादी के समय से ही सरकार परिवार नियोजन को लेकर काम कर रही है। इसके लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

समय-समय पर कार्यक्रमों में कुछ बदलाव जरूर हुए, मगर उद्देश्य एक ही रहा परिवार नियोजन। इससे मानव जीवन के स्तर को बेहतर करने में मदद मिलेगी। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि इससे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार व आधारभूत संरचना के उचित विकास के प्रति बेहतर काम हो पाएगा। जनसंख्या पर नियंत्रण होगा तो राज्य और देश दुनिया के अन्य विकसित देशों की तुलना में आगे बढ़ेंगे।

सरकार के लिए आसान नहीं यह चुनौती

सरकार स्वास्थ्य सेवा को लेकर पहले जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भले ही चिंतित हो लेकिन यह चुनौती आसान नहीं है। आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2005 में कुल प्रजनन दर जहां 4.2 था, वहीं आज 17 वर्षों के बाद वह 3.0 हाे गया है। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि यदि हमें परिवार कल्याण कार्यक्रम के प्रति सफलता हासिल करनी है, तो उसके लिए प्रजनन दर को 2.0 पर लाना होगा।

स्वास्थ्य विभाग भी इसे बड़ी चुनौती मान रहा है। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का कहना है कि इस चुनौती को स्वीकार करना होगा और मिलकर स्वास्थ्य सेवा संबंधी सभी कार्यों को जनता तक पहुंचाना होगा। परिवार कल्याण कार्यक्रम से ही राज्य के विकास में मदद मिलेगी और स्वास्थ्य सेवा से लेकर हर सुविधा व संसाधन बढ़ेगा।

 

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