बिहार भाजपा के नेता बिहार में होने वाला जातीय जनगणना का खुल कर विरोध तो नही कर रहे है। लेकिन लगे हाथों नीतीश कुमार को आईना भी दिखा दे रहे है। ये आईना नीतीश कुमार के सबसे नजदिकी रहे सुशील मोदी ने दिखाया है। लगभग 8 सालों तक नीतीश कुमार और सुशील मोदी की जोडी बिहार में थी।

सुशील मोदी ने जातीय जनगणना का स्वागत तो किया लेकिन, ये भी बता दिया कि ये इतना आसान नही है। अबतक जिन जिन राज्यों ने जातीय जनगणना जैसा कुछ कराया भी है तो वो सफल नही हो पाया और जातीय जनगणना हो भी गई तो हिम्मत नही हुई कि उसे सार्वजनिक करें। सुशील मोदी ने बिहार सरकार को नसीहत दी है कि जातीय जनगणना में लगने वाले अधिकारियों को ट्रेनिंग के लिए उन राज्यों में भेजा जाए जहां ये हो चुका है। जहां ये असफल हुआ है उसका भी अध्यन हो।

राज्यों की हिम्मत नही हुई कि आंकडे प्रकाशित कर सके- सुशील
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने जातीय जनगणना कराने के लिए कैबिनेट की स्वीकृति के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद देते हुए कहा कि बिहार सरकार को कर्नाटक और तेलंगाना टीम भेजकर अध्ययन कराना चाहिए कि इन दोनों राज्यों ने किस प्रकार जातीय गणना कराई थी ।

साथ ही इस बात का भी अध्ययन कराना चाहिए कि 2011 की सामाजिक, आर्थिक, जातीय गणना में क्या त्रुटियां थी कि केंद्र सरकार जाति के आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं करा पाई । मोदी ने कहा कि कर्नाटक सरकार ने जातीय गणना तो कराई परंतु 7 वर्ष हो गए आज तक आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं कर पाई। कुछ जातियों की संख्या काफी कम पाई गयी और उनके विरोध के डर से कोई भी सरकार जातीय आंकड़े प्रकाशित नहीं कर सकी ।

2011 केंद्र सरकार भी 5500 करोड़ करके असफल रही थी
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा तेलंगाना ने 2014 में ‘समग्र कुटुंब सर्वे’ के नाम से जातिय गणना करायी जिसमें एक ही दिन में पूरे सरकारी तंत्र ने सर्वे का काम पूरा किया । इस सर्वे में 75 सामाजिक, आर्थिक मुद्दों पर सर्वेक्षण किया गया था।

केंद्र सरकार ने 5500 करोड़ रुपए व्यय कर 2011 में बिना तैयारी के जल्दबाजी में SECC, 2011 कराया जिसमें 46 लाख जातियां दर्ज हो गई और 1 करोड़ 18 लाख से ज्यादा त्रुटियां पाई गई। मोदी ने कहा की उपरोक्त तीनों सर्वेक्षण का पूरा अध्ययन किया जाए ताकि वो गलतियां बिहार में नहीं दोहराई जाए।