छपरा : देश में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर सभी की निगाहें टिकी हैं। राष्ट्रपति पद को लेकर मुकाबला भले ही द्रौपदी मुर्मू और यशवंत सिन्हा के बीच हो, लेकिन इस मुकाबले को लालू यादव ने भी त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की। ये बात अलग है कि लालू को इसमें सफलता नहीं मिल सकी। जी हां; हम बात कर रहे हैं लालू यादव की जो बिहार से हैं। सारण के रहने वाले लालू यादव का राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने का सपना इस बार भी अधूरा रह गय। इस बार भी मढौरा के रहीमपुर निवासी लालू प्रसाद यादव का नामांकन आवश्यक प्रस्तावकों के अभाव में रद्द हो गया है।

इस बात की जानकारी देते हुए खुद लालू प्रसाद यादव ने बताया कि उन्होंने 100 प्रस्तावकों की व्यवस्था करने की काफी कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके पूर्व भी 2017 में उनकी नामजदगी प्रस्तावक के अभाव में रद्द हुआ था। बता दें कि लालू यादव वह शख्स हैं जिन्होंने अपना नामांकन पर्चा वार्ड पार्षद, लोकसभा, विधानसभा व विधान परिषद के कई चुनावों में भरा है और इन सब चुनावों में अपना भाग्य आजमा चुके हैं।


मरते दम तक लड़ेंगे चुनाव
सारण जिले के मढ़ौरा नगर पंचायत क्षेत्र स्थित यादव रहीमपुर के निवासी लालू यादव नामांकन रद्द होने पर अपने गांव वापस लौट आए हैं। लालू यादव ने कहा कि उनका यह प्रयास मरते दम तक जारी रहेगा। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में उनका पूरा विश्वास है।

लालू यादव का चुनावी सफर
गौरतलब है कि लालू यादव का चुनावी सफर 2001 में शुरू हुआ था। जीवन का पहला चुनाव उन्होंने इसी साल मढ़ौरा नगर पंचायत के वार्ड पार्षद का लड़ा था. फिर 2006 और 2011 में भी अपने नगर पंचायत के वार्ड पार्षद चुनाव में कूदे, लेकिन इन तीनों चुनावों में नाकमायाबी ही हाथ लगी। इसके बाद ये 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी छपरा से नामजदगी कर निर्दलीय प्रत्याशी बने, लेकिन हार गए।

बार-बार ठोकी ताल पर…
वर्ष 2015 का विधानसभा चुनाव भी इन्होंने मढ़ौरा क्षेत्र से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी लड़ा और पराजित हो गए। यही नहीं विधान परिषद के 2016 में सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र, 2020 में सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र और 2022 में सारण त्रिस्तरीय पंचायत निर्वाचन क्षेत्र के चुनावी मुकाबले में भी इन्होंने ताल ठोकी, लेकिन असफल ही रहे।

नर हो, न निराश करो मन को!
सारण के धरती पकड़ लालू यादव का सपना चुनाव लड़ने का रिकार्ड बनाना है। वह कहते हैं कि चुनावी अखाड़े में कूदने का उनका सिलसिला थमने वाला नहीं। वो सियासत के उन खिलाड़ियों में से नहीं जो हार मान कर बैठ जाएं। इनका मानना है कि कभी तो जनता उन्हें मौका देगी और विश्वास है कि एक दिन उन्हें राज्य या देश के किसी सदन में पहुंचने का मौका जरूर मिलेगा।