धान का कटोरा कहे जाने वाले कैमूर में इस साल डेढ़ महीना देरी से धान के रोपनी शुरू हुई है। इसके पीछे की वजह यह है कि बारिश नहीं होने की वजह से जलाशयों से नहरों में पानी नहीं छोड़ा गया। ऐसी स्थिति में किसानों को सूखे की चिंता सता रही थी। लेकिन डेढ़ माह देरी से ही सही जैसे ही नहरों में पानी के आने का सिलसिला शुरू हुआ किसान खेती बाड़ी में लपट गए।

आपको बता दें कि कैमूर जिले के मोकरी बेतरी में सुगंधित धान की खेती होती है। और उससे बनने वाले चावल की चर्चा विदेशों में होती है। बड़े पैमाने पर गोविंदभोग राजभोग जैसे सुगंधित बेशकीमती चावल का निर्यात दुनिया के नामी-गिरामी देशों में होता है। यही नहीं यहां के चावल का भोग अयोध्या में श्री राम मंदिर में लगता है। बहरहाल कैमूर के वैसे किसान जिनकी उम्मीदे नहरों पर नहीं है वह निजी नलकूपों के जरिए धान की रोपाई समय पर कर लिए। लेकिन 60 फीसदी खेतों की सिंचाई नहरों से होती है लिहाजा अभी भी 60% खेत धान के रोपाई का बाट जोह रहे हैं। खैर जैसे ही बुधवार को नहरों में पानी आया किसान खेत में उतर आए।

कैमूर में सूखे जैसे हालात पैदा हो गए थे। जिले भर में महज 44 फ़ीसदी ही धान खेती हो पाई है। वो भी 44 फीसदी में लगभग आधे से अधिक धान की रोपनी करने वाले वो किसान थे। जिसके खेतो में समरसेबल या ट्यूबवेल लगा हुआ है। कैमूर के आसपास की मुख्य नदियां अब नहरों में पानी देने लगी है जिससे किसानों के खेतों में पानी पहुंच रहा है हालांकि इस बार धान की बुवाई प्रति वर्ष से एक से डेढ़ महीने लेट है लेकिन पानी आने से किसान काफी खुश है।




