मगध यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों को बीते आठ महीने से पगार नहीं मिल रही है। लंबे समय से पगार नहीं मिलने की वजह से सहायक प्रोफेसर परवेज अख्तर गंभीर बीमारी की गिरफ्त में आ गए हैं। उन्हें बोन मैरो कैंसर (मायलोमा) है। आलम यह है कि यह आफत ऐसे समय में आई है, जब उन्हें बीते आठ महीने से यूनिवर्सिटी की ओर से पगार के नाम पर एक ढेला भी नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में बीमारी को हराना परवेज अख्तर के लिए चुनौती बन गई है।
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अचरज की बात है कि प्रोफेसर अख्तर ने यूनिवर्सिटी से खुद के इलाज के लिए 25 लाख रुपए की डिमांड बतौर लोन की है, जो अब तक स्वीकृत नहीं हुई है। यूनिवर्सिटी के इस रवैये से प्रोफेसर अख्तर दुखी हैं। उन्होंने यूनिर्वसिटी के रजिस्टार को लिखा है कि यदि पैसे की कमी की वजह से हमारे साथ अनहोनी हुई तो हमारा परिवार 100 करोड़ रुपए वसूलेगा। यह संदेश उन्होंने कमिश्नर को भी भेजा है। साथ ही उन्होंने हाईकोर्ट में जाने की तैयारी कर ली है। प्रोफेसर अख्तर का कहना है कि वह संयुक्त परिवार के अकेला मुखिया हैं।

एमआरआई के लिए भी नहीं थे रुपए
परवेज अख्तर एमयू के शिक्षा विभाग में बतौर सहायक प्रोफेसर कार्यरत हैं। इनके कार्यकाल में एमयू के शिक्षा विभाग ने कई मुकाम हासिल कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उम्दा पहचान बनाई है। इनका कहना है कि बोन कैंसर से इसलिए पीड़ित हो गया कि मेरे पास इलाज के लिए बीते आठ महीने से पैसे नहीं हैं। यहां तक एमआरआई के लिए भी पैसे नहीं थे। अब अपनी कर्मभूमि यूनिवर्सिटी से इलाज के लिए लोन मांग रहा हूं तो वह भी नहीं मिल रहा है।

उन्होंने बताया कि टाटा मेडिकल सेंटर कोलकाता ने इलाज के खर्च का ब्योरा दिया है। सेंटर के अनुसार 5 लाख रुपये कीमोथेरेपी और दस लाख रुपए आउटोलोगस स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में खर्च होंगे। इस खर्च का ब्योरा भी यूनिवर्सिटी को भेजा है। उन्होंने कहा कि कैंसर पर जीत हौसले से होती है। यदि हमें खर्च में कोई कमी आई तो तय है कि हमारा हौसला टूटेगा और हम कमजोर पड़ेंगे और फिर कुछ भी हो सकता है। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि कुछ भी बुरा हुआ तो हमारा परिवार यूनिवर्सिटी के जिम्मेदार अधिकारियों से 100 करोड़ रुपए का जुर्माना वसूलेगा। क्योंकि एक जीवन की कीमत 100 करोड़ तो है ही।

बीते आठ महीने से पगार बंद रहने का कारण
बीते आठ महीने से यूनिवर्सिटी की ओर से वेतन नहीं दिए जाने का कारण यूनिवर्सिटी के सभी बड़े पदों पर प्रभारियों का होना है। स्थायी तौर पर एक भी बड़े पद अधिकारी काम नहीं कर रहे हैं। इसके पीछे की वजह यह है कि आठ माह पूर्व एमयू के कुलपति करोड़ों रुपये के घोटाले में फंस चुके हैं।

तमाम तरह की जांच यूनिवर्सिटी से लेकर निगरानी की ओर से की जा रही है। ऐसे में कोई भी अधिकारी बड़ी जिम्मेदारी लेने से दूर भाग रहा है। नतीजतन यूनिवर्सिटी के सभी बड़े-छोटे शिक्षकों की पगार आठ महीने से ठंडे बस्ते में पड़ी है।




