बांका में मौसम की मार झेल रहे किसानों के लिए आवारा पशु सिरदर्द बन गया है। एक सदी पूर्व कथा सम्राट प्रेमचंद ने अपनी कालजयी रचना पूस की रात में जंगली पशुओं से किसानों के नुकसान का दर्द बयां किया था। इसके सौ साल बाद भी वही समस्या अभी भी मौजूद है। एक तरफ सुखाड़ तो दूसरी ओर आवारा पशु, दोनों की किसान मार झेल रहे हैं।

पानी को तरसी किसानी पर बांका में जंगली जानवरों का आतंक भी लगातार बढ़ रहा है। धान नहीं रोप पाने पर किसान अब दूसरी फसल लगाकर अपनी गरीबी से लड़ने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन रजौन, अमरपुर, धोरैया, चांदन, बौंसी, बाराहाट, समेत अन्य प्रखंडों के ग्रामीण इलाकों में इन दिनों जंगली सुअर और बंदर से खासे परेशान है।

चांदन प्रखंड के गौरीपुर, बिरनिया, सिलजोरी, कुसुमजोरी, कोरिया सहित कई पंचायतों के दर्जनों गांव में बड़ी संख्या में बंदर का आतंक हो गया है। बंदर सुबह से शाम तक मकई, भिडी, कद्दू, आदि, मूली की फसल को बड़ी मात्रा में नष्ट किया जा रहा है। इससे किसानों की परेशानी बढ़ गई है।

खाली खेतों में सब्जी की खेती शुरु करने पर दिन भर बंदर और रात को जंगली सुअर फसल को बर्बाद कर रहे हैं। बंदरों से फसलों को बचाने के लिए कुछ किसानों ने पटाखे, आग और लाठी की व्यवस्था करनी पड़ रही है। इसके साथ ही बरसात और गर्मी में उन्हें देर रात तक खेत में फसलों की रखवाली करनी पड़ती है।





