दुखद : बच्चों ने जीते जी नहीं पूछा इसलिए, बुजुर्गों ने खुद ही कर दिया अपना पिंडदान

भोपाल. पुरखों के तर्पण का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए श्राद्ध पक्ष में तर्पण किया जाता है. लेकिन क्या आपने सुना है कि कोई जीते जी खुद अपना पिंडदान या तर्पण करे. अगर नहीं तो आज हम आपको ऐसी ही दुर्भाग्यपूर्ण तस्वीरें दिखाने जा रहे हैं. जिनमें भोपाल के वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्ग खुद अपने हाथों से अपना पिंडदान और तर्पण कर रहे हैं. इनका कहना है जब जीते जी हमारे बच्चों ने हमें छोड़ दिया तो मरने के बाद उनसे क्या उम्मीद करें.

Bhopal. भोपाल के वृद्धाश्रम में बहुत मार्मिक दृश्य उपस्थित हुआ जब बुजुर्गों ने खुद का तर्पण किया.

मौत के बाद न बने बोझ इसलिए खुद कर दिया पिंडदान
किसी जीवित व्यक्ति को अपना तर्पण करते देख किसी का भी मन विचलित हो सकता है. लेकिन यह हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है. भोपाल के अपना घर वृद्धाश्रम में रहने वाले कुछ बुजुर्ग ऐसे हैं जिन्हें उनके बच्चों ने पहले तो अपने ही घर से बेदखल कर दिया और अब बरसों से कोई उनकी सुध लेने नहीं पहुंचा. अपनों से मिले इस तिरस्कर से व्यथित यह बुजुर्ग अब श्राद्ध पक्ष में खुद अपना तर्पण कर रहे हैं. कुछ बुजुर्ग तो यहां दशकों से रह रहे हैं. इनका कहना है मौत के बाद हम जन्म मरण के बंधन से मुक्ति यानि मोक्ष पाना चाहते हैं ताकि फिर ऐसा कष्ट और अपमान न मिले. इन बुजुर्गों ने खुद ही अपनी सारी क्रियाएं पूरी कर लीं.

विधि विधान से तर्पण
वृद्धाश्रम में बुजुर्गों के इच्छा अनुसार उनके तर्पण के लिए सभी व्यवस्थाएं प्रबंधन ने की हैं. तर्पण और पिंडदान अच्छे से हो सके इसलिए शास्त्रों के जानकार पंडित को आश्रम में बुलाया जाता है. पंडित अनिल शुक्ला का कहना है ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी को जीते जी अपना तर्पण या पिंड दान करना पड़े. लेकिन यह बुजुर्ग मजबूर हैं क्योंकि इनके अपने परिवार ने छोड़ दिया है. हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि इनका शेष जीवन बहुत खुशहाल रहे और सुख शांति से व्यतीत हो.

बच्चों से अपील घर के बुजुर्गों का रखें ध्यान
वृद्धाश्रम की संचालिका विभूति मिश्रा कहती हैं कि कई बुजुर्ग यहां पर बरसों से रह रहे हैं. इनके बच्चों और परिवार ने कभी इनकी सुध नहीं ली. बुजुर्गों की अंतिम क्रिया भी वृद्धाश्रम की ओर से कराई जाती है. बीमार  पड़ने या और कोई परेशानी होने पर भी उनका पूरा ध्यान रखा जाता है. आश्रम में अभी करीब दो दर्जन बुजुर्ग रह रहे हैं. कुछ बुजुर्ग ऐसे भी थे जिनके अंतिम संस्कार में शामिल होने भी उनके बच्चे नहीं आए. विभूति मिश्रा कहती हैं हम समाज के लोगों और परिवारों से यही अपील करते हैं कि अपने बड़े बुजुर्गों को पूरा सम्मान दें और घर पर मान सम्मान से रखें ताकि उन्हें दर-दर न भटकना पड़े.

जिनके लिए सब कुछ किया वही नहीं लेते सुध
वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों को सबसे बड़ी पीड़ा इस बात की है कि उन्होंने अपने बच्चों को काबिल और पढ़ा लिखा बेहतर इंसान बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने घर से निकाल दिया. यह बुजुर्ग माता-पिता आज की पीढ़ी से यही अपील करते हैं कि अपने घर में माता-पिता को सम्मान दें और उनकी ठीक से देखभाल करें.

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