बिहार के अस्पतालों में चलती ‘रेफर’ राजनीति, लाचार मरीजों से कमीशन का कनेक्शन हैरान कर देगा

नवादा: बिहार के सरकारी अस्पतालों में ‘रेफर’ राजनीति चल रही है। इस राजनीति के सबसे ज्यादा शिकार आम लोग और मरीज बन रहे हैं। इस खेल में सरकारी डॉक्टरों के अलावा उनके सहयोग से चलाये जा रहे निजी क्लिनिक भी शामिल हैं। मरीजों को ‘रेफर’ राजनीति का शिकार पूरी प्लानिंग के साथ बनाया जाता है। सबसे पहले मरीज अपनी समस्या लेकर सरकारी अस्पताल पहुंचते हैं। अस्पताल के फोर्थ ग्रेड स्टॉफ सबसे पहले मरीजों का मनोबल तोड़ते हैं। अस्पताल की शिकायत करने लगते हैं। जैसे-यहां क्यों आ गए? यहां आप और बीमार हो जाइएगा? आपको देखने वाला कोई नहीं है क्या?आपको घरवाले पसंद नहीं करते हैं? आपको सरकारी अस्पताल में मारने के लिए आए हैं? आप यहां से कहीं और जाइए। ठीक हो जाइएगा। मरीज सोचता है कि जब सरकारी अस्पताल का स्टॉफ ऐसा कह रहा है, तो बात सच होगी।

बिहार के अस्पतालों में चलती 'रेफर' राजनीति, लाचार मरीजों से कमीशन का कनेक्शन  हैरान कर देगा

‘मरीजों को भड़काते हैं डॉक्टर’
उसके बाद मरीज को देखने के लिए डॉक्टर पहुंचते हैं? आते ही ऐसी दवा लिखते हैं, जो बाहर मिलती है। मरीज के परिजनों के पूछने पर डॉक्टर ऐसा व्यवहार करते हैं, जैसे मरीज ने सरकारी अस्पताल में आकर कोई गुनाह कर दिया है। मरीजों को इतना परेशान कर दिया जाता है कि वो वहां से भागने की फिराक में लग जाता है। कई बार मरीज खुद ही डॉक्टर से किसी अच्छे निजी अस्पताल में रेफर करने की बात कहता है। उसके बाद शुरू होता है ‘रेफर’ राजनीति का असली खेल। सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले चतुर्थ ग्रेड स्टॉफ कहते हैं कि सबका कमीशन बंधा हुआ है। मरीज किसी अस्पताल में जाए, वहां से कमीशन आ जाता है। चतुर्थ ग्रेड वाले कर्मचारी कहते हैं कि एंबुलेंस वाले से लेकर रिक्शा वाले तक का कमीशन फिक्स है। ये खेल बहुत बड़ा है और इसमें डॉक्टर के साथ अस्पताल के स्टॉफ भी शामिल होते हैं।

‘रेफर’ राजनीति
ऐसा ही कुछ मामला नवादा सदर अस्पताल में हुआ। जहां गुरुवार की रात शहर के गढ़ मोहल्ला का लड़का प्रिंस अपनी कुछ परेशानी को लेकर अस्पताल में भर्ती हुआ। उसके बाद बिना उसे देखे डॉक्टरों ने सीधे रेफर कर दिया। स्थिति, तब और नाजुक हो गई, जब प्रिंस को परिजन ठेले पर लेकर निजी अस्पताल जाने लगे। बताया जा रहा है कि प्रिंस जैसे ही अस्पताल पहुंचा, उसने पर्ची कटवाई। पिता ने जाकर डॉक्टर से समस्या बताई। डॉक्टर ने पर्ची देखा और तुरंत रेफर कर दिया। लड़के को मिर्गी की शिकायत थी। सदर अस्पताल में महज उसे बुखार की दवा देकर रेफर कर दिया गया।

बिना देखे कर दिया रेफर
परिजनों के मुताबिक डॉक्टर ने बिना मरीज को देखे ही कह दिया कि वे हड्डी के डॉक्टर हैं। इसे तुरंत निजी अस्पताल ले जाओ। परिजनों का आरोप है कि 102 एम्बुलेंस सेवा के लिए संपर्क करते-करते थक गए। जब भी नम्बर डायल किया तो बिजी ही बताता रहा। उसके बाद प्रिंस को परिजन पावापुरी लेकर गए। सवाल सबसे बड़ा है कि आखिर अस्पताल में जनरल फिजिशियन की ड्यूटी क्यों नहीं लगाई जाती है? उसके बाद मरीज के पहुंचते ही उसे किस हिसाब से रेफर कर दिया जाता है? अस्पताल में चल रहे ‘रेफर’ राजनीति के इस खेल का खुलासा अस्पताल के कर्मचारी ही कर देते हैं।

कमीशन का धंधा गंदा है!
अस्पताल के कर्मियों की माने, तो इस खेल में डॉक्टरों की भूमिका काफी बड़ी है। बिना उनके बोले कोई भी मरीज बाहर नहीं जाता। जब डॉक्टर कहते हैं, तभी मरीज बाहर के अस्पताल का रुख करते हैं। निजी अस्पताल से सरकारी डॉक्टरों का कमीशन बंधा हुआ है। वहीं, कर्मचारी बताते हैं कि ज्यादातर निजी अस्पताल सरकारी डॉक्टरों की ओर से चलाए जाते हैं। मरीजों की संख्या निजी अस्पतालों में घटने पर डॉक्टर सरकारी अस्पताल के मरीजों को टारगेट करते हैं। डॉक्टर सरकारी अस्पताल में मरीजों को देखते ही, उसे भड़का कर निजी अस्पताल में भेजते हैं। नवादा सदर अस्पताल की घटना कोई नई नहीं है।

 

 

 

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