मुजफ्फरपुर : कुढ़नी विधान सभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार केदार गुप्ता की जीत बहुत बड़ी मानी जा रही है. यह इसलिए भी कि सामने सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले जदयू-राजद के महागठबंधन की करारी हार हुई है जो प्रदेश में अजेय मानी जा रही थी. खास तौर पर लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा और महागठबंधन के बीच यह उपचुनाव सेमीफाइनल के तौर पर भी देखा जा रहा था. लेकिन, भाजपा ने अपेक्षाकृत मजबूत माने जा रहे महागठबंधन को 3649 मतों से शिकस्त देकर बिहार की सियासत में नई बहस छेड़ दी है.

कुढ़नी में बीजेपी के केदार गुप्ता का महागठबंधन के मनोज कुशवाहा को मात देना भाजपा के लिए यह बड़ी जीत मानी जा रही है. खास बात यह कि इसे भाजपा नीतीश कुमार की हार के तौर पर प्रचारित कर रही है. भाजपा यह भी प्रचारित कर रही है कि नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने तीन उपचुनाव में स्कोर 2-1 का रहा है. यहां यह भी बता दें कि गोपालगंज में भी भाजपा की जीत हुई थी. भाजपा यह भी कह रही है कि मोकामा में अगर अनंत सिंह फैक्टर न होता तो जीत उसकी ही होती. जाहिर है भाजपा के हौसले बढ़े हुए हैं.
बता दें कि बिहार के तमाम राजनीतिक दलों ने इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी थी. आखिरकार कड़ी टक्कर में बीजेपी ने जीत हासिल कर महागठबंधन बनने के बाद हुए उपचुनाव में 2-1 की बढ़त बना ली और महागठबंधन के लिए नई चुनौती पेश कर दी है. दरअसल कुढ़नी विधान सभा उप चुनाव परिणाम ने आने वाले समय के लिए राजनीतिक रूप से कई बड़े संकेत दिए हैं. सकर महागठबंधन के लिए क्योंकि बीजेपी ने न केवल कुढ़नी सीट जीती है; बल्कि उसने महागठबंधन के परंपरागत वोट बैंक में तगड़ी सेंध भी लगा दी है. ऐसे में माना जा रहा है कि आनेवाले समय में महागठबंधन की परेशानी बढ़ सकती है.
बीजेपी की जीत में सवर्ण वोटरों और वैश्य वोटरों की तो बड़ी भूमिका रही ही, दलित और अति पिछड़े वोटरों ने भी बीजेपी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसका खास सियासी पहलू यह है कि यही वो वोट बैंक है जो अभी तक महागठबंधन; खासकर जदयू का सबसे मजबूत कोर वोटर माना जाता रहा है. लेकिन, गोपालगंज और कुढ़नी उपचुनाव ने साबित कर दिया है कि बीजेपी इसमें भारी सेंधमारी करने में सफल रही है.
बीजेपी के नेता सम्राट चौधरी कहते हैं कि बीजेपी शुरू से ही सर्वसमाज यानी तमाम जातियों को साथ लेकर राजनीति करती रही है. बीजेपी ही वो पार्टी है जो सबको लेकर चल सकती है. बाकी राजनीतिक दलों ने केवल जाति की राजनीति की है और दलितों और अति पिछड़ों को महज एक वोट बैंक समझा है.

दरअसल, बिहार के सियासत में दलित और अति पिछड़ा वोटर जिस पार्टी के साथ रहता है उस पार्टी के इर्द गिर्द राजनीति घूमती रही है. नीतीश कुमार के साथ लंबे समय तक दलित और अति पिछड़े वोटर गोलबंद रहे. इसका परिणाम है सत्रह साल से नीतीश कुमार बिहार की गद्दी पर काबिज हैं. लेकिन, कई कारण हैं जिससे दलित वोटर नाराज बताए जा रहे हैं. इनमें एक बड़ा कारण शराबबंदी लागू रहना भी माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि इसका असर कुढ़नी में खूब दिखा.

वहीं, नगर निकाय चुनाव को लेकर संशय के हालात और अति पिछड़े वोटरों को अपने पाले में करने के लिए बीजेपी की जबरदस्त मेहनत का नतीजा है कि अति पिछड़े वोटरों का रुझान भी बीजेपी की तरफ दिख रहा है और कुढ़नी में इसका फायदा बीजेपी को मिला.


