गोपालगंज. बिहार में चिमनी भट्ठा ब्लास्ट होने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही है. पहले गोपालगंज फिर मोतिहारी के रक्सौल में चिमनी भट्ठा ब्लास्ट की घटना हुई. दोनों हादसे में 10 मजदूरों की मौत हो गई. इन हादसों के बाद बिहार में चिमनी भट्ठों के सुरक्षा मानकों पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. आखिर क्यों बार-बार चिमनी भट्ठा ब्लास्ट की खबरें आ रही हैं, अब प्रशासन भी इसकी जांच करने में जुटा हुआ है. दरअसल गोपालगंज के बरौली थाना क्षेत्र के रतनसराय गांव में शुक्रवार की शाम पहली घटना हुई, जहां आग लगाते ही चिमनी भट्ठा ब्लास्ट कर गया. हादसे में मुंशी हरेंद्र चौधरी की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि एक मजदूर की गोरखपुर में मौत हो गयी. वहीं, चिमनी की आग में झुलसे 3 मजदूरों को बेहतर इलाज के लिए लखनऊ रेफर किया गया है.

गोपालगंज के बाद शुक्रवार शाम मोतिहारी के रामगढ़वा थाना इलाके में चिमनी ब्लास्ट की खबर आई, जिसमें 8 लोगों की मौत हो गयी. ऐसे में गोपालगंज और मोतिहारी में चिमनी ब्लास्ट की घटना ने चिमनी भट्ठा के निर्माण की मानकों पर सवाल खड़ा कर दिया है. बताया जाता है कि जिस चिमनी भट्ठा पर घटना हुई. वह चिमनी जिग-जैग तकनीक का नहीं था. साधारण तरीके से सीधा चिमनी भट्टा का निर्माण करवाया गया था, जबकि खनन विभाग और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जिग जैग तकनीक से बने चिमनी भट्टा ही चलाने की अनुमति दी है.
क्यों जरूरी है जिग-जैग तकनीक
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पिछले साल 2021 के फरवरी माह में सभी चिमनी भट्ठा संचालकों को जिग-जैग तकनीक लगाने के लिए कहा था. ताकि इस तकनीक से वायु प्रदूषण पर रोक लगाई जा सके और सुरक्षा मानकों को मजबूत किया सके. जिग-जैग चिमनी की अधिक ऊंचाई होती है और अंदर राउंड में बनाये जाते हैं. ताकि निकलने वाली धुंआ का भारी अपशिष्ट अंदर ही रह सके.
तय मानकों का नहीं हो रहा पालन
गोपालगंज में करीब 205 ईंट भट्टा है, जिसमें महज 90 ईट भट्टा संचालकों ने ही जिग जैग तकनीक से चिमनी का निर्माण कराया है. कई ऐसे भी ईंट भट्ठे हैं जो घनी आबादी, नदी और स्कूलों के किनारे चल रहे हैं लेकिन ऐसे संचालकों पर खनन विभाग कोई कार्रवाई नहीं करता है. ऐसे में पुरानी चिमनी-भट्ठा ब्लास्ट हो रही है. समय रहते पुरानी चिमनी भट्ठा पर कार्रवाई नहीं हुई तो ब्लास्ट होने की घटनाएं ऐसे ही सामने आती रहेंगी और मजदूरों की मौत होती रहेगी.






