गुमनामी में है 13वीं शताब्दी का बना यह जैन मंदिर, 23वें तीर्थंकर से जुड़ा है इतिहास

भोजपुर.जिले का मसाढ़ गांव काफी ऐतिहासिक और पुराना माना जाता है. इस गांव ने अपने अंदर हजारों साल पुराने इतिहास को संजों कर रखा है. इस गांव में आज भी 1300 शताब्दी में बने जैन का मंदिर मौजूद है. लेकिन ये मंदिर सरकार के उदासीन रैवया के वजह से अपने अस्तित्व को खो रहा है. कभी इस गांव में जैन धर्म के 23वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ विश्राम करने आये थे. जिले में जैन के प्रमुख मंदिरों में से एक है मसाढ़ का पार्श्वनाथमंदिर है.श्री मून लाल इण्डाउमेन्ट ट्रस्ट द्वारा संचालित यह मंदिर ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है. लेकिन अपेक्षा के हिसाब से इसका विकास नहीं हो सका है.

Bhojpur News: गुमनामी में है 13वीं शताब्दी का बना यह जैन मंदिर, 23वें  तीर्थंकर से जुड़ा है इतिहास - Jain temple built in the 13th century is in  oblivion history is associated

जैन धर्म के ग्रन्थ में शामिल है इस मंदिर का जिक्र

जिला मुख्यालय आरा से लगभग 9 किलोमीटर दूर है मसाढ़. बताया जाता है कि यह मंदिर जैन धर्म के 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथमोक्ष प्राप्ति के बाद जब बनारस से सम्मेद शिखर जा रहे थे तो मसाढ़ गांव में विश्राम किये थे. उसके बाद यहां पर लगभग 600 साल पूर्व इस मंदिर का निर्माण कराया था. सातवीं सदी में भ्रमण करने यहां आये मशहूर चीनी यात्री ह्यानसांग ने अपनी यात्रा वृतांत में इसका उल्लेख किया है.

मंदिर के चौहदी में मौजूद है कई अन्य मंदिर

इस मंदिर परिसर के पूर्वी भाग में भगवान शिव का मंदिर है, जिसका द्वार बाहर से है. वहीं मंदिर परिसर के अंदर पश्चिमी हिस्से में सती माई का मंदिर है. बताया जाता है कि सती माई ने मंदिर का छत नहीं ढ़ालने के लिए स्वप्न में कहा था, तब से यह मंदिर बिना छत का है. वहीं मंदिर परिसर के अंदर पार्श्वनाथ मंदिर के बगल में छत्रपाल का मंदिर है. मंदिर के उत्तर में मुख्य द्वार साधारण है.जबकि दक्षिण में लोहे का एक बड़ा गेट है. यह बड़ा गेट विशेष आयोजनों में खुलता है. समय-समय पर इसमें विशेष आयोजन होता है.

विशेष मेटीरियल से बना है मंदिर

इस मंदिर का निर्माण लखौरी ईट व सूर्खी-चूना से हुआ है. बाद में दीवारों के गिरने से सामान्य ईंटों का इस्तेमाल किया गया है. इस मंदिर से चोरों ने 12 अक्टूबर 1992 को भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा को चोरी कर एक जगह कीचड़ में फेंक दी थी. काफी खोजबीन के बाद 10 जनवरी 1993 को इस प्रतिमा को पुलिस ने बरामद कर ली थी.

भारतीय दिगंबर जैन परिषद् के प्रदेश सचिव पद्मराज कुमार जैन ने मसाढ़ के पार्श्वनाथ मंदिर के अलावे शहर के अन्य जैन मंदिरों को जैन सर्किट से जोड़ने की मांग दो-तीन साल पूर्व की थी, जिसके बाद सर्वे किया गया और इनसे सुझाव भी मांगा गया था. लेकिन सब ठंडे बस्ते में पड़ गया. जैन परिषद के प्रदेश सचिव के अनुसार इस मंदिर को जैन सर्किट से जोड़े बिना जैन सर्किट अधूरा है. उन्होंने कहा था कि ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टिकोण से यह मंदिर जितना महत्वपूर्ण है. अपेक्षाकृत इसका विकास नहीं हो पाया है.

पर्यटन स्थल बनाने की मांग

ग्रामीणों ने कहा कि यदि पर्यटन स्थल के दृष्टिकोण से मंदिर का विश्राम गृह, अतिथि गृह आदि को बनाया जाये और तालाब का सौन्दर्यीकरण कर दिया जाये तो, यहां पर्यटक काफी संख्या में आयेंगे. इससे मसाढ़ गांव के साथ पूरे भोजपुर जिले का विकास होगा. क्यों कि जैन धर्म के लोग आस्था में बहुत ज्यादा विश्वास करते है और कोई भी जैन तीर्थ अस्थल पर देश-विदेश से जैन श्रद्धालु आते है.

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