बिहार :2024 के लिए मेगा प्लान ? 38 बनाम 26 में कौन मारेगा चुनावी मैदान ?

बिहार : 2024 के रण का बिगुल देश की दो बड़ी पार्टियों ने फूंक दिया है. 2024 में दिल्ली फतह के लिए विपक्ष मंथन कर रहा है तो बीजेपी अपना कुनबा बढ़ाने में जुट गई है. आम चुनावों में एक साल से भी कम समय बचा है. NDA और विपक्षी दल अब 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं. विपक्षी दलों की दूसरी मीटिंग बेंगलुरू में हो रही है. विपक्ष की एकता कितनी मजबूत है इसका जवाब बेंगलुरू की मीटिंग से मिल जाएगा. इस मीटिंग की खास बात ये है कि इसमें वो पार्टियां भी शामिल हो रही हैं जो पटना में नहीं थी. इससे पहले 23 जून को पटना में नीतीश कुमार की अगुवाई में मीटिंग हुई थी, जिसमें 17 पार्टियां शामिल हुईं थी. बेंगलुरू की मीटिंग में 26 पार्टियां एक मंच पर आई हैं.

sonia gandhi narendra modiबेंगलुरु में विपक्ष का महाजुटान

2024 के आम चुनाव को लेकर विपक्ष ने एकता के दांव को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है. इस मीटिंग में तीन एजेंडे चर्चा में होंगे. पहला- चुनाव में विपक्ष की एकजुटता दूसरा- राज्यों में सीट शेयरिंग और तीसरा- UPA का नया नाम. विपक्ष जानता है कि पीएम मोदी को अकेले टक्कर नहीं दी जा सकती. इसके लिए विपक्ष को एकजुट होना ही होगा. एक तरफ विपक्ष मंथन कर रहा है तो दूसरी तरफ बीजेपी भी पीछे नहीं है. जेपी नड्डा ने 18 जुलाई को दिल्ली के अशोका होटल में NDA की मीटिंग बुलाई है. बैठक की अध्यक्षता खुद पीएम मोदी करेंगे. अपने गठबंधन सहयोगियों के अलावा, बीजेपी ने कई नए सहयोगियों और कुछ पूर्व सहयोगियों को भी बैठक में आमंत्रित किया है.ध्रुवीकरण पर टिकी नजर

विपक्ष का फॉर्मूला बीजेपी विरोधी वोटों को एकजुट करना है. इसके लिए विपक्ष 2014 और 2019 में बीजेपी के विरोध में पड़े वोटों को नजीर मान कर योजना बना रहा है. साल 2014 के आम चुनाव में NDA को 38.5 फीसदी वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस और दूसरी  विपक्षी पार्टियों को कुल 61.5 फीसदी वोट मिले थे. सिर्फ 2014 ही नहीं 2019 के आम चुनाव में भी बीजेपी के विरोध में पड़े वोटों को लेकर विपक्ष के हौसले बुलंद है. विपक्ष का गणित है कि 2019 में एनडीए को 45% फीसदी वोट मिले थे. जबकि पूरा विपक्ष मिलकर 55% वोट अपने पाले में कर पाया था. विपक्ष की पूरी प्लानिंग बीजेपी विरोधी वोटों के ध्रुवीकरण पर टिकी है, लेकिन क्या वोटों का गणित वाकई इतना सीधा है. इसी सवाल के जवाब पर 2024 का चुनावी खेल टिका है.

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