गया : एक दौर था जब गया की पहचान अगरबत्ती से होती थी. यहां बनाई गई अगरबत्ती की डिमांड देश के कोने-कोने में होती थी. उन दिनों हाथ से अगरबत्तियां तैयार की जाती थी. कहा जाता है कि गया के हर 10वें लोग अगरबत्ती के काम से जुड़े हुए थे, लेकिन आधुनिकरण के दौर में गया की अगरबत्ती की पहचान धीरे-धीरे सीमटता चला गया. मशीनीकरण के युग में अब हर शहर में छोटे-बड़े अगरबत्ती का उद्योग लग चुका हैं. ऐसे में गया के अगरबत्ती की डिमांड अब कम गई है. लिहाजा गया के अगरबत्ती उद्योग से जुड़े लोगों को अब अच्छा मुनाफा नहीं हो रहा है.
हालांकि गया में अभी भी कई अगरबत्ती के उद्योग संचालित है. जिसमें गया शहर के गेवालबीघा में मोहम्मद आरिफ का उद्योग काफी पुराना है. पिछले 3 पीढियों से गया में अगरबत्ती निर्माण का कार्य कर रहे हैं. सबसे पहले इनके दादा जी ने उद्योग लगाया था. उन दिनों 50 से अधिक मजदूर और कारीगर काम करते थे, लेकिन मशीनीकरण के युग में मशीन से अगरबत्ती का निर्माण कार्य शुरू हो गया. लोगों की संख्या घटती गई. आज उनके उद्योग में 15 लोग काम करते हैं. हालांकि मशीन के युग में उत्पादन बढ़ा है, लेकिन इसकी डिमांड अब बहुत ज्यादा नहीं है. हर छोटे-बड़े शहरों में अगरबत्ती का उद्योग लग चुका है.
सरकार भी नहीं दे रही ध्यानअगरबत्ती व्यवसाय मोहम्मद आरिफ बताते हैं कि पिछले 3 पीढ़ियों से गेवाल बीघा में अगरबत्ती का उद्योग चल रहा है. लेकिन अभी की तुलना में पहले का धंधा बहुत बढ़िया था. उस में अच्छी कमाई होती थी. मशीनीकरण में उत्पादन बढ़ी है, लेकिन कमाई कम हो गई है. डिमांड कम होने की वजह से ओने पौने दाम में अगरबत्तियों को बेचा जा रहा है. अगली पीढ़ी इस व्यवसाय में आने को तैयार नहीं है. लिहाजा जैसे तैसे इस रोजगार को चलाया जा रहा है और सरकार भी इस पर ध्यान नहीं दे रही है.
इस काम को छोड़ चूड़ी बनाने में लगे लोग
बता दें कि गया में हाथ से तैयार अगरबत्ती की डिमांड बेंगलुरु में सबसे अधिक होती थी. हर सप्ताह गया से माल लेकर गाड़ी बेंगलुरु को जाती थी. लेकिन अब इसकी डिमांड सीमित शहरों के लिए रह गई है. बिहार के दूसरे जिलों के अलावे कुछ राज्यों में भेजी जा रही है. इससे अगरबत्ती व्यवसाय से जुड़े व्यवसायियों को बेहतर मुनाफा भी नहीं हो रहा है. पहले के अगरबत्ती बनाने वाले कारीगर और मजदूर अब इस काम को छोड़कर चूड़ी बनाने के काम में जुट गये हैं.