जातीय गणना पर जमकर सियासत, 2024 में फिर कमंडल बनाम मंडल की लड़ाई

पटना : जातीय गणना को ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद वोटों का गणित बदल सकता है. इसके समर्थन और विरोध की सियासत के पीछे यही गणित है. जातीय गणना को कमंडल और मंडल की लड़ाई की तरह भी देखा जा रहा है. 2024 चुनाव से कुछ ही महीने पहले जनवरी के महीने में राम मंदिर का भी उद्घाटन होना है. बीजेपी की कोशिश मतदाताओं को हिंदू अस्मिता पर लाने की होगी. इसे भांपते हुए ही बिहार की सत्ताधारी पार्टियों ने ठीक उसी तरह ओबीसी कार्ड चल दिया है जिस तरह का दांव लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने चला था.

2024 में फिर कमंडल बनाम मंडल की लड़ाई

लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से ही सभी दल जहां अपने वोट बैंक को दुरुस्त करने में जुटे हैं. वहीं, दूसरे दलों के वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत में हैं. बिहार में पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग की आबादी राजनीतिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण है. यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल इस वोट बैंक को साधने की तैयारी में जुटे हैं. बीजेपी जहां पीएम मोदी को देश का सबसे बड़ा पिछड़ा चेहरा बता कर वोट मांगने की तैयारी में है तो वहीं महागठबंधन बिहार में हो रहे जातीय गणना को मुद्दा बनाकर इस वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है.

महागठबंधन ने बीजेपी के खिलाफ चला OBC कार्ड

बिहार में जातीय गणना पर जमकर सियासत हो रही है. महागठबंधन के दल इसका श्रेय लेने के लिए फ्रंटफुट पर नजर आ रहे हैं तो बीजेपी असमंजस में फंसी हुई नजर आ रही है. नीतीश सरकार ने जातीय गणना को कैबिनेट से मंजूरी दी थी तो बीजेपी इसके समर्थन में खड़ी रही थी, लेकिन अब उसके नेता दो नावों पर सवार हैं. बीजेपी के कुछ नेता आर्थिक तो कुछ जातिगत जनगणना के पक्ष में है. ऐसे में बीजेपी से न तो खुलकर विरोध करते बन रहा है और न ही समर्थन करते बन रहा है?

पिछड़ों और अति पिछड़ों को साधने की कोशिश

तारकिशोर प्रसाद चाहे जितना भी जातीय गणना के पक्ष में खुद को दिखाने की कोशिश करे, लेकिन JDU का कहना है कि बीजेपी जातीय गणना पर रोक लगाने के लिए पर्दे के पीछे से खेल खेल रही है. लोकसभा चुनाव में  सभी पार्टियों के लिए पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग सबसे बड़ा वोट बैंक है. बिहार के सभी राजनीतिक दल इसे अपने पाले में करने के लिए जी जान से जुटी हुई है. अब देखने वाली बात ये होगा कि जनता किसकी दावेदारी को मजबूत करती है.

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