राजभवन सचिवालय का नया आदेश, गवर्नर हाउस-बिहार सरकार में फिर खींचतान की स्थिति

पटना. बिहार में शिक्षा विभाग और राजभवन के बीच अब खींचतान जारी है. इसी क्रम में अब राजभवन ने स्वायत्तता को लेकर पत्र जारी किया है जिसके तहत अब सभी विश्वविद्यालयों को सिर्फ राजभवन के आदेश का पालन करना होगा. राज्यपाल के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चोंग्थू के जारी आदेश के बाद शिक्षा विभाग अब विश्विद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकेगा. राज्य के सभी विश्विद्यालयों को सिर्फ कुलाधिपति के आदेश का पालन करने का आदेश दिया गया है. बिहार राजभवन सचिवालय से जारी आदेश में कहा गया है कि राज्यपाल सचिवालय के अतिरिक्त किसी और की बातें मानना स्वायत्तता के अनुकूल नहीं. आदेश में लिखा गया कि, ऐसा देखा भी जा रहा है कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता की अनदेखी हो रही है. किसी और की तरफ से भी आदेश जारी किया जा रहा है. कुलपतियों को भेजे पत्र में 2009 के निर्देश की भी चर्चा की गई है.

दरअसल, शिक्षा विभाग के एसीएस केके पाठक के फैसलों के कारण बिहार सरकार और राजभवन के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है. पिछले दिनों शिक्षा विभाग के एसीएस केके पाठक के उस फैसले को राज्यपाल ने किया खारिज कर दिया था, जिसमें केके पाठक ने बीआरए विश्विद्यालय के वीसी और प्रो वीसी के वित्तीय अधिकार पर रोक लगाई थी. राज्यपाल के प्रधान रॉबर्ट एल चोंग्थू ने बैंकों को आदेश जारी किया है कि वे केके पाठक के आदेश को नहीं मानें.

इसके बाद शिक्षा विभाग ने बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के कुलपति और प्रतिकुलपति के वेतन रोकने के अपने फैसले को वापस लेने से इनकार कर दिया था. शिक्षा विभाग की तरफ से राजभवन को भेजे गए पत्र में विभाग के तरफ से राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 का हवाला देते हुए विभाग के सचिव बैद्यनाथ यादव की ओर से भेजे गए पत्र में कहा गया कि राज्य सरकार सालाना विश्वविद्यालयों को 4000 करोड़ रुपए देती है, लिहाजा शिक्षा विभाग को विश्वविद्यालयों को उनकी जिम्मेदारी बताने, पूछने का पूर्ण अधिकार है कि वे इस राशि का कहां और कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं.

हालांकि, बाद में सीएम नीतीश कुमार ने राज्यपाल विश्वनाथ आर्लेकर से मुलाकात की थी और राजभवन और शिक्षा विभाग का विवाद थम गया था. बिहार सरकार ने अपना आदेश पलटते हुए शिक्षा विभाग जारी की गई विवादित अधिसूचना वापस ले ली थी. लेकिन अब राजभवन के इस नए आदेश के बाद माना जा रहा है कि इस पत्र के बाद एक बार फिर बिहार में सियासी घमासान फिर शुरू हो सकता है.

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