मोतीपुर में चाय पीने कब आएंगे CM नीतीश? 18 साल से इंतजार कर रहे लोग, जानें पूरा मा’मला

मुजफ्फरपुर 2005 के विधानसभा चुनाव के दौरान बिहार में परिवर्तन की ब्यार बह रही थी। लालू-राबड़ी राज के खिलाफ लोगों ने मतदान किया। तब मोतीपुर चीनी मिल के मैदान में जनसभा आयोजित की गई थी। उस समय के मुख्यमंत्री प्रत्याशी नीतीश कुमार ने किसानों और चीनी मिल के कामगारों से एक वादा किया था। उन्होंने कहा था कि अगर उनकी सरकार बनी तो वो एक बार मोतीपुर आएंगे, इसी चीनी मिल की बनी हुई चीनी से बनी चाय पिएंगे। नीतीश कुमार की मुराद पूरी हुई। 18 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। दो दशक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना वादा नहीं निभाया। फिलहाल नीतीश की सत्ता में लालू की भागीदारी है और उनका बेटा डिप्टी सीएम है। मोतीपुर के लोगों का सपना पहले ज्यादा स्याह है।

शुगर पर बिहार का लेटेस्ट डेटा

80 के दशक की शुरुआत में देश के कुल चीनी उत्पादन में बिहार का योगदान 28 प्रतिशत का था। अब बिहार की वर्तमान भागीदारी मात्र 2.5 फीसदी है। आजादी के बाद बिहार में चीनी मिल की संख्या 35 थी, जो अब घटकर केवल 11 रह गई है। बिहार में चालू चीनी मिल बगहा, हरिनगर, नरकटियागंज, मझौलिया, सासामुसा, गोपालगंज, सिधवलिया, हसनपुर, लौरिया और सुगौली में है। राज्य में कुल 17 ऐसी चीनी मिल है, जो बंद है।

नीतीश के वादे को पूरा करेंगे महासेठ?

बिहार के उद्योग मंत्री समीर कुमार महासेठ ने कहा है कि राज्य सरकार बंद पड़ी चीनी मिल को शुरू करने के लिए पहल करेगी। उन्होंने कहा कि नई एथेनॉल पॉलिसी के कारण अब बिहार में बंद पड़े चीनी मिलों को खोला जाएगा। जिससे पहले गन्ना किसानों को साल में तीन महीने का उत्पादन होता था, वहीं अब सालों भर गन्ने का उत्पादन हो पाएगा। एथेनॉल के साथ-साथ बिहार चीनी उत्पादन में भी जल्द ही नंबर वन बनेगा। बंद पड़े चीनी मिलों को खोलने के साथ-साथ नई चीनी मिल खोलने वाले निवेशकों को सरकार सारी सुविधाएं उपलब्ध कराएगी। वैसे, तो नेताओं की बातों आमलोग ज्यादा भरोसा नहीं करते हैं, फिर भी बिहार के बंद पड़े चीनी मिल के कामगार और गन्ना किसानों को उम्मीद जगी है। बिहार में चीनी मिल खुलने से पुराने दिन लौट आएंगे। खुशहाली फिर से लौट आएगी।

समस्या के जड़ में सरकारीकरण!

बिहार के बंद ज्यादातर चीनी मिलों में समस्या तब शुरू हुई, जब इनका सरकारीकरण किया गया। किसानों को गन्ना की राशि मिलने में देरी होने लगी। कर्मचारियों की सैलरी में लेट-लतीफी होने लगी। मशीनों के मेंटेनेंस ना होने के कारण ज्यादातर चीनी मिल बंद हो गए। मेंटेनेंस के नाम पर बंद गरौल चीनी मिल और मोतीपुर चीनी मिल का ताला आज तक नहीं खुल पाया। कर्मचारियों ने इसे लेकर न्यायालय का जब दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट प्रक्रिया में ही सालों लग गए। बाद के दिनों में मोतीपुर चीनी मिल की जमीन पर औद्योगिक क्षेत्र बनाया गया, जहां अभी इथेनॉल फैक्ट्री खुल गई।

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