गया में पिंडदान करने वालों को सगे-संबंधी क्यों नहीं रखते अपने यहां? जानें वजह…

गया: बिहार के गया में वर्षों भर पिंडदान का विधान है, लेकिन पितृपक्ष के दौरान पिंडदान का विशेष महत्व बताया गया है. इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 28 सितंबर से है और यह 14 अक्टूबर तक चलेगा, लेकिन क्या आपको पता है कि पितृपक्ष के दौरान कई श्रद्धालु ऐसे होते हैं जिनका निजी सगे-संबंधी गया में रहते हुए भी वो उनको अपने घरों में नहीं रख सकते. पिंडदान के लिए गया आने वाले सभी श्रद्धालु यहां किसी धर्मशाला या होटल में रहते हैं. इसके पीछे की क्या मान्यताएं हैं बताते हैं आपको.

Pitru paksha 2019: If you are going to pinddaan in Gaya then you should  know that 45 shrines are offered on the pindan and 9 on for tarpanaar -  Pitru paksha 2019:गया वैदिक मंत्रालय पाठशाला के पंडित राजा आचार्य के अनुसार सगे-संबंधी को अपने घर में नहीं रखने के पीछे मान्यता है कि गया श्राद्ध के लिए आने वाले लोग पितृ श्राद्ध या पिंडदान करने आते हैं. पुराण के अनुसार उन्हें कई नियम का पालन करना अनिवार्य होता है. कैसा आचरण करना, किस प्रकार रहना, जब गया तीर्थ आए तो श्राद्ध भूमि को नमस्कार करना, एकांतवास करना, जमीन पर सोना, पराया अन्न नहीं खाना, पितृ स्मरण या देवता स्मरण में रहना सब श्राद्ध में विधान बताया गया है. जो श्रद्धालु गया तीर्थ यात्रा करने आ रहे हैं उन्हें इन नियमों का पालन करना आवश्यक है. गया तीर्थ यात्रा अपने पितरों के उत्तम लोक के प्राप्ति हेतु कर रहे हैं इसलिए उन्हें एकांतवास में रहना या किसी अन्य स्थल पर रह कर श्राद्ध कार्य पूरा कर सकते हैं. इसलिए कोई भी तीर्थ यात्री अपने निजी सगे-संबंधी के घर नहीं रह सकते.

पिंडदान से मिलता है मोक्ष

धर्म ग्रंथों के अनुसार बिहार के गया जी को मोक्ष की नगरी कहा गया है. यहां पूर्वजों का पिंडदान करने से उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है. ऐसा कहा जाता है कि पितरों की आत्मा इस मोह माया की दुनिया में भटकती रहती है. वहीं, कई योनियों में उनकी आत्मा जन्म लेती है. ऐसे में गया में पिंडदान करने मात्र से इससे मुक्ति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

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