बदहाली के लिए एक बार फिर चर्चाओं में सदर अस्पताल, इलाज कराना किसी जंग लड़ने से कम नहीं

सुपौल: सुपौल सदर अस्पताल अपनी बदहाली के लिए एक बार फिर चर्चाओं में है. जिले के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक इस अस्पताल की दुर्दशा ऐसी है कि यहां इलाज कराना मरीजों और मरीज के परिजनों के लिए जंग लड़ने जैसा है. सदर अस्पताल में बदइंतजामी के अंबार की पोल तब खुली जब शिकायत के बाद गुरुवार की देर शाम RJD जिला प्रवक्ता अस्पताल पहुंच गए. जब अस्पताल का निरीक्षण किया तो बदहाली देख वो भी हैरान थे. दरअसल, अस्पताल में ज्यादातर मरीजों के बेड्स पर चादर नहीं थी. ना तो मरीजों के खाने में मेन्यू को फॉलो किया जा रहा था. मेन्यू तो दूर, कुछ मरीजों को तो खाना दिया भी नहीं गया.

बिहार सरकार के मिशन-60 का असर: बदल रही सुपौल सदर अस्पताल की व्यवस्था, मिल  रही नई-नई सुविधाएं - Effect of Mission-60 of Bihar Government: The system  of Supaul Sadar Hospital is changing,

बदहाली को लेकर चर्चाओं में सदर अस्पताल

मरीजों से पूछताछ करने पर पता चला कि कुछ मरीजों का शाम को ऑपरेशन हुआ, लेकिन उन्हें अस्पताल की ओर से खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया गया. कुछ मरीज तो ऐसे भी मिले जो खाना नहीं मिलने पर लिट्टी खाकर काम चला रहे थे. तो कुछ के परिजन खाने की खराब क्वालिटी के चलते अस्पताल में ही खाना बनाते दिखे. सदर अस्पताल में मेस के संचालन के लिए दो साल पहले ही क्षितिज जीविका समूह को जिम्मेवारी सौंपी गई थी, लेकिन मरीजों की शिकायतें बताने को काफी है कि जीविका समूह किस तरह अपने जिम्मेदारी निभा रही है.

इलाज कराना किसी जंग लड़ने से कम नहीं

निरीक्षण के दौरान RJD नेता जब प्रसव वार्ड पहुंचे, तो वहां डॉक्टर केबिन में ताला लटका था. जब इसको लेकर दूसरे डॉक्टरों से सवाल किया गया, तो उन्होंने ये कहकर सवाल टाल दिया कि डॉक्टर किसी ओर वार्ड में है. हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि अगर डॉक्टर अस्पताल में है तो केबिन में ताला क्यों लटका है. किसी भी जिले की ज्यादातर जनसंख्या सदर अस्पताल पर निर्भर रहती है. खासकर बात अगर ग्रामीण और गरीब आबादी की हो तो उनके लिए सदर अस्पताल ही इलाज का एकमात्र सहारा होता है. ऐसे में सदर अस्पतालों की ये बदहाली देख ये कहना गलत नहीं है कि बिहार में आम जनता के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे है.

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