गया : गया में पितृपक्ष के मौके पर लाखों हिंदू धर्मावलंबी अपने पुरखों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण कर रहे हैं. ऐसे में महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया में भी अनूठा संगम देखने को मिल रहा है. एक ओर जहां महाबोधि मंदिर परिसर में बुद्धं शरणं गच्छामि की स्वर गूंज रही है, वहीं दूसरी ओर पिंडवेदियों पर मोक्ष के मंत्रों का उच्चारण हो रहा है. पितृपक्ष महासंगम के पांचवें दिन आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि को बोधगया स्थित धर्मारण्य, मातंगवापी और सरस्वती पिंडवेदियो पर कर्मकांड का विधान है. लेकिन भगवान बुद्ध का आंगन कहे जाने वाले महाबोधि मंदिर परिसर में भी कालांतर से पिंडदान करने का विधान चला आ रहा है.
वैदिक मंत्रोचार वातावरण में गुंजायमान
मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार के रूप में जाने जाते हैं. इस कारण अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बोधगया स्थित विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर में कालांतर से चली आ रही तर्पण व पिंडदान की प्रक्रिया आज भी जारी है. पितृपक्ष के दाैरान हजारों की संख्या में सनातनी श्रद्धालु प्रतिदिन मंदिर परिसर और मुचलिंद सरोवर के समीप कर्मकांड के तहत पिंडदान के विधान को करते हैं. आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि के दिन विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर परिसर भी पिंडदानियों से भरा पड़ा है. वैदिक मंत्रोचार वातावरण में गुंजायमान हैं. मंदिर परिसर के मुचलिन्द सरोवर क्षेत्र में पिंडदानी अपने पूर्वजों की मोक्ष की कामना को लेकर कर्मकांड कर रहे हैं. मान्यता है कि महाबोधि मंदिर में पिंडदान के बाद मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध और मंदिर के पीछे स्थित बोधि वृक्ष का नमन जरूरी है. सब लोग पिंडदान के बाद प्रणाम ज़रूर करते हैं.
महाबोधि मंदिर में पिंडदान के विधान को कालांतर हैं निभाते
पुरखों के मोक्ष की कामना लेकर आने वाले श्रद्धालु भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार मानते हुए महाबोधि मंदिर में भी पिंडदान के विधान को कालांतर से निभाते आ रहे हैं. पिंडदानी विश्व विख्यात महाबोधि मंदिर के पास एक स्थान पर पिंड छोड़ देते हैं और फिर भगवान बुद्ध के दर्शन कर वापस चले जाते हैं. देश विदेश से आये श्रद्धालु गयाजी में जहां विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के दर्शन करते हैं, वहीं बोधगया आकर ज्ञानस्थली को नमन करने का भी अवसर मिलता है.
