दरभंगा: जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर है नवादा माता हयहठ सिद्धपीठ मंदिर। यह बिहार का पहला ऐसा मंदिर है जहां माता की प्रतिमा की पूजा नहीं होती है। यहां माता के सिंघासन की पूजा की जाती है। स्थानीय लोग बताते हैं कि सैंकड़ों वर्ष पूर्व एक साधक दरभंगा बहेड़ी प्रखंड से प्रतिदिन कमला नदी पार करके मां भगवती की पूजा अर्चना करने आया करते थे। एक दिन साधक काफी बीमार पड़ गए फिर वह प्रतिदिन की तरह ही माता की पूजा करने आये। पूजा के साधक ने माता से निवेदन किया कि अब वह काफी बीमार हो गए। उन्होंने पूजा करने के बाद माता से अब वह पूजा करने नहीं आ पाएंगे। यह कहकर साधक मंदिर के द्वार पर ही लेट गया। माता ने साधक को सुसुप्तावस्था में स्वप्न दिया कि तुम यहां से मेरी प्रतिमा को ही अपने साथ लेते चलो। इसके बाद साधक प्रसन्न होकर माता की प्रतिमा को अपने साथ लेकर हावीडीह चला गया। जब नवादा गांव के लोगों को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने माता की प्रतिमा को फिर से वापस लाने का फैसला किया गया। लेकिन, फिर से माता का स्वप्न्न मंदिर के पुजारी को की प्रतिमा को वहीं रहने दीजिए और आप लोग नवादा गांव मेरी सिंघासन की पूजा कीजिये उसी से आपके गांव का कल्याण होगा। तबसे नवादा गांव में माता के सिंघासन की पूजा की जा रही है।

शारदीय नवरात्र का यहां विशेष महत्व है
बेनीपुर इलाके के नवादा गांव स्थित यह ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर है। वैसे तो इस मंदिर में प्रत्येक दिन पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यहां साल के चारों नवरात्रा के मां दुर्गा की विशेष पूजा होती है। लेकिन शारदीय नवरात्र का यहां विशेष महत्व है। पड़ोसी देश नेपाल सहित अन्य जिलों से भी लोग मां के सिंघासन का दर्शन करने आते हैं। यहां नवरात्र में बलि प्रदान की प्रथा है। कलश स्थापना के दिन से लेकर नवमी तक भक्त पूरी आस्था विश्वास और मनोकामना के साथ भगवती की पूजा अर्चना करते हैं सिंहासन की पूजा के संबंध में लोगों का अलग-अलग मंतव्य है कुछ लोगों का कहना है कि शिवप्रिय सती का वास स्कंध इसी जगह पर गिरा है।
नवादा दुर्गा स्थान 52 सिद्ध पीठों में से एक है
सिंहासन का रूप कान के आकार का है। वहीं इस सम्बंध में डॉक्टर चंद्रमणि झा का कहना है कि नवादा दुर्गा स्थान 52 सिद्ध पीठों में से एक है। इस पीठ का वर्णन देवी भागवत पुराण व मत्स्य पुराण में भी किया गया है। मंदिर के पुजारी अमरनाथ ठाकुर का कहना है जो सच्चे मन से मां भगवती की पूजा अर्चना करते हैं उनको मनवांछित फल मिलता है। पूजा को लेकर मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया गया है। इस इलाके के लोगों का कहना है कि सैकड़ों वर्ष पहले राजा हयहठ ने मां जगदंबा की मूर्ति स्थापित की थी। इसलिए इस मंदिर का नाम माता हयहठ सिद्धपीठ मंदिर पड़ा।