सुपौल शिक्षा विभाग में घोटालों की फेहरिस्त काफी लंबी है और यह थमने के बजाय बढ़ती ही जा रही है. हाल ही में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक की स्वच्छ कोशिश को अधिकारी कामधेनु समझ कर माल (रुपये) उगाही का जरिया बनाने में लगे हैं. अगर समय रहते शिक्षा विभाग के वरीय अधिकारी सजग नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं कि जिले में हुए बेंच डेस्क घोटले, अल्पसंख्य छात्रवृति घोटाले की तरह समरसेबल बोरिंग घोटाला न हो जाये. दरअसल, मामला यह है कि हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के लिए चिलचिलाती गर्मी में वोटरों को सुविधा देने के लिए शिक्षा विभाग के द्वारा एक बेहतरीन प्रयास किया गया था. जिसका लाभ मतदान के दिन वोटर तो लेते ही गर्मी छुट्टी के बाद बच्चे भी इसका आनंद उठाते. लेकिन, शिक्षा विभाग के अधिकारी और ठेकेदार की गठजोड़ से इसमें पलीता लगता दिख रहा है और बड़े घोटाले की ओर इशारा कर रहा है.
शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक के निर्देश पर जिले के 190 स्कूलों में समरसेबल बोरिंग और और हैंडवाश स्टेशन का निर्माण मतदान के दिन तक संपन्न होना था. इसके लिए प्रति स्कूल 1 लाख 91 हजार रुपये खर्च का प्रावधान किया गया. इसमें भी घोटाला न हो तो एसीएस के के पाठक के आदेश के द्वारा स्कूल के प्रधान को शिक्षा विभाग के सूचीबद्ध संवेदकों से कोटेशन लेकर प्रशासनिक स्वीकृति देने का प्रावधान किया गया था. लेकिन, आरोप ये है कि अधिकारियों ने स्कूलों में के बजाय जिला में ही अपने चहेते ठेकेदारों के बीच इस योजना की बंदरबांट कर दी.

बताया जा रहा है कि 1 लाख 91 हजार की लागत से स्वच्छ पेयजल आपूर्ति हेतु समरसेबुल पम्प, 1 एचपी का मोटर, चार नल और 1000 हजार लीटर का टंकी लगाने का आदेश दिया गया. विभागीय नियमों के मुताबिक, 5 लाख से नीचे के काम की स्वीकृति विद्यालय के प्रधानाचार्य के स्तर से तीन एजेंसी से निविदा प्राप्त कर सबसे कम रेट वाले एजेंसी से कार्य कराना था. लेकिन, कहीं भी ना तो निविदा निकाली गई और ना ही कोटेशन प्राप्त किया गया. सीधा-सीधा कुछ खास ठेकेदार को काम आवंटित कर दिया गया. जिन जगहों पर ठेकेदार ने समय रहते कागजी प्रक्रिया पूरी कर ली, वहां इसे 1 लाख 49 हजार के मिनिमम रेट पर बनाया जा रहा तो कहीं इसे 1 लाख 91 हजार पर. अब इस इस मामले को लेकर सुपौल के डीएम कौशल कुमार ने भी जांच के आदेश दे दिए हैं.
बहरहाल, अब सवाल उठता है कि अगर निविदा जारी नहीं किया गया तो यह गलत है और इसपर कार्रवाई भी होगी. उधर, कई हेडमास्टर को तो नियमों की जानकारी तक नहीं है. ऐसे में निविदा जारी करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है. सूत्रों का यह भी कहना है कि हेडमास्टरों को मामले में मोहरा बनाकर ठेकेदार अधिकारियों की मिलीभगत से काम आवंटन हुआ है. अब देखना होगा कि इस मामले की जांच कहां तक जाती है या अन्य घोटाले की तरह इसकी भी फाइल कही गुम हो जाएगी.

