“जहां शब्द रुक जाएं, वहां रफ़ी शुरू होते हैं”

मोहम्मद रफ़ी की पुण्यतिथि (31 जुलाई) पर विशेष

✍️ प्रकाश सिन्हा, संपादक — मुज़फ्फरपुर न्यूज

संगीत की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं, जो सिर्फ इतिहास नहीं, विरासत बन जाते हैं। मोहम्मद रफ़ी उन्हीं नामों में सबसे शीर्ष पर हैं। आज 31 जुलाई है — वो तारीख़ जब साल 1980 में रफ़ी साहब हमें अलविदा कह गए। लेकिन क्या वो वाकई चले गए?

नहीं।

क्योंकि जब भी “तेरे मेरे सपने”, “क्या हुआ तेरा वादा”, “चाहूंगा मैं तुझे”, “अब कोई गुलशन न उजड़े”, या “ओ दुनिया के रखवाले” जैसे गीत सुनाई देते हैं, लगता है जैसे रफ़ी साहब आज भी हमारे साथ हैं — हर सांस में, हर एहसास में।

रफ़ी साहब के बारे में एक बेहद मार्मिक बात किशोर कुमार ने उनके निधन के बाद कही थी:

“मैं तो दो-तीन तरह से ही गा पाता हूँ। लेकिन रफ़ी साहब सौ तरीकों से गा लेते थे। वो मुझसे कई गुना बेहतर फनकार थे। मेरा उनसे कोई मुकाबला नहीं।”

जब किशोर दा जैसा फनकार इतना कहे, तो फिर आम फैंस और मीडिया को ‘बेहतर कौन’ की बहस का कोई हक़ नहीं रह जाता।

सच्चाई यह है कि मोहम्मद रफ़ी और किशोर कुमार, दोनों सिर्फ महान गायक ही नहीं थे, बल्कि उतने ही महान इंसान भी थे।

उनके बीच कभी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी, ना कोई ईर्ष्या।

मीडिया और फैंस की बनाई झूठी कहानियों के विपरीत, दोनों एक-दूसरे के प्रति बेहद आदर और प्रेम रखते थे।

कहते हैं जब रफ़ी साहब का इंतकाल हुआ तो किशोर दा उनके जनाज़े के पास घंटों बैठे रहे और रोते रहे।

लोगों ने देखा — एक फनकार, दूसरे फनकार के चरण पकड़कर शोक में डूबा है।

क्या इससे बड़ा प्रमाण किसी रिश्ते की पवित्रता का हो सकता है?

रफ़ी साहब का संगीत सिर्फ सुरों का समुंदर नहीं था, वो एक अध्यात्म था।

उनकी आवाज़ में खुदा की मोहब्बत थी, माँ की ममता थी, आशिक़ की तड़प थी, देशभक्ति की आग थी — और इंसानियत की सादगी थी।

वो गायक कम, युग पुरुष ज़्यादा थे।

आज की पीढ़ी के लिए यह ज़रूरी है कि वो सिर्फ उनके गाए गीतों को यूट्यूब पर ‘प्लेलिस्ट’ में न सुनें, बल्कि उन्हें महसूस करें।

क्योंकि रफ़ी साहब का गाना, सिर्फ गीत नहीं होता — वो एक अनुभव होता है।

मुज़फ्फरपुर न्यूज की ओर से, हम उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हैं।

हम भाग्यशाली हैं कि हम उस युग के वारिस हैं जिसमें रफ़ी साहब ने सुरों की भाषा से इंसान को इंसान बनाना सिखाया।

आज की तारीख़ पर उन्हें सिर्फ याद न करें,

उन्हें सुनें, उन्हें जिएं, उन्हें महसूस करें।

शत-शत श्रद्धांजलि।

जय संगीत, जय रफ़ी।

— ✍️ प्रकाश सिन्हा

संपादक, मुज़फ्फरपुर न्यूज

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