सुरभि की बेटी दो साल की है. नेहा बहुत परे’शान रहती है. वजह? उसकी बेटी कुछ खाती ही नहीं है. उसे ज़’बरदस्ती खाना खि’लाना पड़’ता है. खासतौर पर पौष्टिक चीज़ें. चॉकलेट और केक तो वो बड़े शौ’क स खा लेती है. पर हरी सब्जियां देखकर ऐसे नाक सि’कोड़ती है जैसे लोग गं’दे ना’ले को देखकर. नेहा को समझ में नहीं आता वो क्या करे. पिछले दिनों उसकी मुलाकात अपनी एक दोस्त से हुई. वो बच्चों की डॉक्टर हैं. नेहा ने उन्हें अपनी दि’क्कत बताई.

साथ ही ये भी बताया कि उसे कैसे ज़’बरदस्ती अपनी बेटी को खाना ठू’स-ठू’सकर खि’लाना पड़’ता है. नेहा की बहन ये उसे ऐसा करने से स’ख्ती से म’ना कर दिया. दरअसल जो नेहा करती है उसे ‘फ़ो’र्स फ़ी’डिंग’ कहती हैं. यानी ज़ब’रदस्ती खाना खि’लाना. दुनियाभर में मां-बाप ऐसा ही करते हैं. बच्चे जब हेल्दी नहीं खाते तो उन्हें डां’ट-डप’टकर या मुं’ह में ठूं’सकर खि’लाते हैं. लेकिन डॉक्टर्स की मानें तो ऐसा हर’गिज़ नहीं करना चाहिए. हमने बात की एक डॉक्टर से. वो मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली में बच्चों की डॉक्टर हैं. उन्होंने फ़ो’र्स फ़ी’डिंग के कुछ ख़त’रे बताए. जैसे:

A. नि’मोनिया का ख़’तरा
B. चो’किंग
C. खाने से न’फ़रत
D. उ’ल्टी और बी’मारी
E. वो च’बा नहीं पाते

Input: oddnaari