हरि वर्मा
बिहार में का बा..। खेल जारी बा…। डबल-डबल चाचा के धमाल बा…। भतीजा हलाकान बा…। नीतीश के दांव बा…, मास्टर स्ट्रोक बा..। तीर कमान से कहीं पे निगाह बा, कहीं पे निशाना बा…। बंगला में बवंडर बा..। पार्टी और परिवार में फसाद बा..। खूब रोमांच बा.. तनी-मनी रोमांस बा..। भावनात्मक छौंका बा..। हनुमान बा.. शेर के बच्चा बा…। लोजपा बा… जदयू बा..। भाजपा-कांग्रेस तमाशबीन बा..। लोजपा के बाद का कांग्रेसों के नंबर आए वाला बा..। इहो सवाल बा…। बिहार में का बा….। ई बा.. ऊ बा…। अपना बिहार में का ना बा…।

नीतीश का आखिरी दांव नहीं, मास्टर स्ट्रोक
नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव प्रचार के आखिरी दिन धमदाहा रैली में भले एलान किया था कि यह उनका आखिरी चुनाव है लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी में टूट का यह दांव उनका आखिरी दांव नहीं है। दरअसल, केंद्रीय मंत्रिमंडल में बदलाव व विस्तार की आहट के बीच नीतीश का यह मास्टर स्ट्रोक है। नीतीश ने सही समय पर तीर कमान से निशाना साधकर एक साथ कई शिकार किए हैं।
दिल्ली से पटना तक घमासान बा
लोक जनशक्ति पार्टी में भीतरी घमासान दिल्ली से पटना तक है। दिल्ली संसदीय दल नेता पर कब्जा जमाने के बाद अब पशुपति पारस की अगुवाई में सभी पांच बागी सांसद पटना पहुंच चुके हैं। जल्द वहां लोजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई जा सकती है जिसमें चिराग पासवान को संसदीय दल नेता के बाद अब पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से बेदखल करने की तैयारी है। चाचा-भतीजे के बीच सियासी टकराव की झलक पहले यूपी में शिवपाल-अखिलेश के बीच दिख चुकी है। चिराग पासवान पहली बार मीडिया से मुखातिब हुए और संकेत दिया कि अब उनके पास कानूनी लड़ाई का विकल्प बचा है। इससे पहले वह सभी पांच बागी सांसदों को पार्टी से निकालने का एलान कर चुके हैं। उधर बागी पांच सांसदों ने भी चिराग को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुरसी से उतारकर सूरजभान को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की घोषणा की है। चाचा पारस खम ठोक रहे हैं कि वह पार्टी पर कब्जा लेकर रहेंगे। चिराग इस हालात के लिए अपने दोनों चाचा (पशुपति पारस को नाम लेकर और नीतीश को इशारे में) को कोस रहे हैं। वैसे लोजपा में बगावत का यह बिगुल तो बिहार चुनाव के दौरान ही बज चुका था।
लोजपा की टूट का नीतीश-भाजपा पर असर
10 नवंबर के बिहार चुनाव नतीजे में तीसरे पायदान पर खिसक कर कमजोर पड़े नीतीश ने सही समय पर एक और दांव खेला है। जल्द केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार होने वाला है। राम विलास पासवान के निधन के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनकी खाली कुर्सी पर नीतीश कुमार किसी कीमत पर चिराग पासवान को नहीं देखना चाहते थे। चिराग ने ही बिहार चुनाव में उनका गणित बिगाड़ा था। अब नीतीश ने चिराग की लौ उनके घर के लोगों से ही बूझा कर हिसाब बराबर कर लिया है। चिराग के खिलाफ बागी तेवर की अगुवाई करने वाले पशुपति पारस और नीतीश के बीच बिहार चुनाव से अब तक मधुर संबंध हैं। यूं भी नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल में पशुपति पारस को तब जगह दी थी, जब वह कहीं के नहीं थे। ऐसे में बदले माहौल में चिराग की जगह लोजपा कोटे से पशुपति पारस को यदि केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलती है तो इस पर नीतीश को एतराज नहीं होगा। भाजपा भी सबका साथ, सबका विकास का नारा बुलंद करने में कामयाब रहेगी। पशुपति पारस के ताजा बयान को इसी कड़ी का हिस्सा माना जा सकता है। पारस ने नीतीश के साथ-साथ मोदी की तारीफ की, वहीं यह भी साफ किया कि उन्होंने लोजपा तोड़ी नहीं, बचाई है और वह राजग का हिस्सा हैं। पारस ने नीतीश को विकास पुरुष बताया। नीतीश के लिए लोजपा का जदयू में विलय के लिहाज से यह मुनासिब समय भी नहीं है। यूं भी किसान आंदोलन के चलते राजग से अकाली दल अलग हो चुका है। लोजपा के साथ-साथ नीतीश को साधकर भाजपा उत्तर प्रदेश के साथ-साथ लोकसभा चुनाव तक फिर से सबका साथ, सबका विकास का राग गुनगुना सकती है। इसलिए अब जदयू-लोजपा की मोदी मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी तय मानी जा रही है।
अब केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार पर नजर
नीतीश इस बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में जदयू को अहमियत दिलाने के मूड में हैं। पिछली बार जब मोदी मंत्रिमंडल का गठन हुआ था तो महज एक मंत्री पद की पेशकश की गई थी। इससे नाराज होकर नीतीश ने ऑफर ठुकरा दिया था। तब केंद्रीय मंत्रिमंडल में जदयू के शामिल न होने का फैसला लिया था। उन्होंने यह फार्मूला अपनाया था कि बिहार में नीतीश और केंद्र में मोदी। इसी फार्मूले पर सब कुछ चला भी लेकिन पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा बड़ा भाई बन गई और नीतीश छोटा। भाजपा ने नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तो बिठा दिया लेकिन नौकरशाही में बदलाव से लेकर लव जिहाद कानून जैसे कई छोटे-बड़े मुद्दों पर भीतरी खींचतान झलकी। यही कारण था कि नीतीश की ताजपोशी के बाद करीब 84 दिनों तक बिहार मंत्रिमंडल का विस्तार अटका रहा। कम सीटों के बाद भी बिहार मंत्रिमंडल में जगह पाने में नीतीश ने खुद को बड़ा भाई साबित कर लिया। अब नीतीश की नजर मोदी मंत्रिमंडल विस्तार पर टिकी है।
सोशल इंजीनियरिंग मजबूत
नीतीश ने चिराग पासवान की लोजपा से जीते मटिहानी सीट के इकलौते विधायक राजकुमार सिंह को इससे पहले अपने पाले में कर लिया। रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा भी अब नीतीश के साथ आ चुके हैं। कुशवाहा ने बिहार चुनाव में मायावती से हाथ मिलाया था। जीतन राम मांझी ढुलमुल हैं। कुशवाहा और मांझी नीतीश और लालू के बीच कड़ी बनने की कोशिश करते रहे हैं। चिराग की पार्टी में टूट के बाद यदि लोजपा और जदयू को केंद्रीय मंत्रिमंडल में मुनासिब प्रतिष्ठा नहीं मिलती तो नीतीश चिराग को छोड़कर पारस की अगुवाई वाले लोजपा के जदयू में विलय की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। इससे जदयू का सोशल इंजीनियरिंग यानी दलित, पिछड़ा, मुसलमान और अपना परंपरागत वोट बैंक मजबूत होगा। फिलहाल, नीतीश न केवल चिराग से हिसाब-किताब बराबर करने में सफल रहे बल्कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जदयू के साथ-साथ केंद्र पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने की रणनीति में आगे बढ़ रहे हैं। नीतीश को इसलिए लोजपा की टूट का यह समय मुफीद लगा। यूं तो टूट के स्वर बिहार चुनाव से ही बुलंद होने लगे थे। अब नीतीश की नजरें कांग्रेस की ओर हैं। कांग्रेस के दस विधायक भी जदयू और नीतीश के संपर्क में है। नीतीश कुशवाहा और मांझी की कड़ी का इस्तेमाल कर केंद्र पर दबाव की रणनीति में कामयाब नजर आ रहे हैं, वहीं अपनी सोशल इंजीनियरिंग को भी मजबूती प्रदान कर रहे हैं। नीतीश भले चुनाव नतीजे से कमजोर पड़ गए थे लेकिन उन्होंने खुद के साथ-साथ जदयू की मजबूती की दिशा में लगातार कदम बढ़ाया है। यही कारण है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार से पहले जब भाजपा के टुन्ना पाण्डेय ने नीतीश विरोधी बयान दिया तो भाजपा को न केवल पाण्डेय को निलंबित कर चुप कराना पड़ा बल्कि जदयू से उठे जवाबी स्वर को भी शांत कराया।
मौसम का मिजाज भांप नहीं पाए चिराग
रामविलास पासवान को सियासत का मौसम विज्ञानी कहा जाता था। उन्होंने 2014 में मोदी का साथ पाकर 7 में 6 लोकसभा सीटें जीती थी। 2019 में छह की छह लोकसभा सीटें जीतीं। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड करीब तीन लाख से अधिक मतों के अंतर से हाजीपुर से जीतने वाले रामविलास पासवान ने खुद के लिए राज्यसभा की सीट पक्की कर ली और भाई पशुपति पारस को हाजीपुर की सीट थमाकर संसद में भेज दिया। रामविलास पासवान के निधन के बाद पशुपति पारस चिराग के लिए भस्मासुर साबित हुए। परिवार के सियासी मुखिया होने के बावजूद रामविलास पासवान ने अपने सांसद भाई रामचंद्र पासवान के निधन के बाद उनके बेटे प्रिंस राज को समस्तीपुर से चुनाव जिताया। राम विलास पासवान ने पार्टी और परिवार को एकजुट रखा। पिता राम विलास पासवान के निधन के बाद विरासत में मिली पार्टी और जिम्मेदारी को चिराग संभाल नहीं पाए। चिराग ने प्रिंस राज को बिहार प्रदेश में पार्टी की जिम्मेदारी से कद कम कर दिया। अब प्रिंस भी चिराग से बागी हो गए। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह मानते हैं कि चिराग ने जो बोया, वही काटा। रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग को सहानुभूति वोट की उम्मीद थी लेकिन उन्होंने बिहार के सियासी चेहरा नीतीश के खिलाफ माहौल तैयार कर खुद का नुकसान कर लिया। चिराग किंग मेकर होना चाहते थे लेकिन नीतीश के दांव से चिराग ते अंधेरा पसर चुका है।
